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________________ ५१४] सेतुबन्धम् [द्वादश अथ रामस्य धनुर्दर्शनमाह उम्मिल्लन्ती चिअ से णिहासेसोण अच्छिवत्तक्खलिया। गुरुओलइभरणभरेदिट्ठी विठ्ठसमरे धणुम्मि णिसण्णा ॥२४॥ [ उन्मीलन्त्येवास्य निद्राशेषावनताक्षिपत्रस्खलिता। गुरुकावलगितरणभरे दृष्टिदृष्टसमरे धनुषि निषण्णा ॥] उन्मीलन्त्येवोन्मेषसमकालमेवास्य दृष्टिर्धनुषि निषण्णा । कीदृशी । निद्रायाः शेषेण तन्द्रीरूपावशिष्टभागेन निद्राविच्छेदेन वावनताभ्यामक्षिपत्राभ्यां स्खलिता पृथग्भूता । तथा च -- निद्राजन्यालस्येन किंचिन्मिलदप्यक्षिपत्रद्वयं विजित्य प्रबोधसमकालमेव निखिलविषयपरित्यागेन धनुषि लग्नेति वीर रसोत्कर्षः सूचितः । किंभूते। गुरुकोऽन्यानिर्वाह्योऽवलगितो रणभरो यत्र । एवम् --- दृष्टः समरो यस्येति सर्वत्र जयशीलत्वादध्यवसाय उक्तः ।।२४।। विमला-[ निद्राशेष ] निद्राजन्य आलस्य से [ अवनत ] मुदी हुई पलकों से ( उन्हें परास्त कर ) पृथक् हुई राम की दृष्टि जागते ही उस धनुष पर स्थित हुई जिस पर युद्ध का भारी भार निर्भर था और जो अनेक युद्धों को देख चुका था ( अनेक युद्धों में सफलता प्राप्त कर चुका था )॥२४।। अथ रामस्योत्थानमाहमुअइ अ किलिन्तकुसुमं अवहोवासमलिग्रोवहाणद्धन्तम् । सइपरिअत्तणविसमं हिअमावेपिसुणं सिलासअणोअम् ।।२५।। [ मुञ्चति च क्लाम्यत्कुसुममुभयावकाशमृदितोपधानार्धान्तम् । सदापरिवर्तनविषमं हृदयावेगपिशुनं शिलाशयनीयम् ।। ] रामो न केवलं धनुः पश्यति, अपि तु शिलारूपं शयनीयं मुञ्चति च । शिलायाः शीतलत्वेन शयनीयतया विरहतापस्याधिक्यमुक्तम् । कीदृशम् । सदापरिवर्तनेन पान्तिरशयनेन विषमं निम्नोन्नतम्, अत एव क्लाम्यन्ति कुसुमानि यत्र । एवं वामदक्षिणावकाशद्वये मुदितौ घृष्टावुपधानस्यार्धान्तौ यत्रेति स्थैर्याभावेन संतापस्याधिक्यमुक्तम् । अत एव हृदयावेगस्य मनस्तापस्य पिशुनं कथकम् । एभिरेव संतापोत्कर्षोऽनुमीयत इति भावः ।।२५॥ विमला-राम ने (धनुष पर दष्टि डालने के साथ ही) उस शिलारूप शय्या को भी छोड़ा, जिस पर बिछे हुये फूल निरन्तर करवट बदलने से कुम्हला गये थे तथा जो कहीं ऊँची कहीं नीची हो गयी थी एवम् तकिये के दायें-बायें भाग मसल उठे थे ॥२५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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