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________________ ५१२] सेतुबन्धम् [द्वादश अथ कमलसौरभोद्गममाहहोइ कमलाअराणं समूससन्ताण चिरणिरोहेक्कमुहो। संचालिअमहुमहरो मारुअभिण्णो वि मंसलो च्चिअ गन्धो॥२०॥ [भवति कमलाकराणां समुच्छ्वसतां चिरनिरोधैकमुखः । संचालितमधुमधुरो मारुतभिन्नोऽपि मांसल एव गन्धः ॥ ] समुच्छ्वसतां विकसतां कमलाकराणां गन्धः प्राभातिकेन मारुतेन भिन्नोऽपि दिशि दिशि क्षिप्तोऽपि मांसलो घन एव भवति । अत्र बीजमाह-चिरं विरोधेन मुद्रणाबहिर्गमन प्रतिबन्धेनैकमुख एक मुखं यस्येत्यहमहमिकया बहिर्भवितुमुत्कण्ठित इत्यर्थः । यद्वा-चिरनिरोधे सत्येकं मुखं द्वारं यस्येत्यर्थः । तेन प्रतिरुद्धानामीषत्कमलविकासे तत्पथेन बहिर्भवतामनिलेनाप्यल्पता कतुन शक्यत इति भावः । एवं संचालितेन मधुना मधुरो मनोहारी ॥२०॥ विमला-विकसित होते हुये कमलों की गन्ध संचालित मधु से मनोहारी है तथा चिरकाल तक कमलों के मुंदे रहने से अभी पूरा विकास न होने के कारण गन्ध के निकलने का एक ही मुख ( द्वारा) है, अतएव वायु उस मार्ग से निकलती हुई उस (गन्ध ) को दिशाओं में फैलाता हुआ भी कम नहीं कर सका ( गन्ध घनी ही है ).॥२०॥ अथ राक्षसानामपशकुनमाह जं चिअ कामिणिसत्यं पाउच्छताण मुक्कवाहत्थबअम् । रक्तसभडाण तं चिअ जाअं णिप्पच्छिमोवऊहणसोक्तम् ॥२१॥ [य एव कामिनीसार्थः आपृच्छयमानानां मुक्तवाष्पस्तबकः । राक्षसभटानां स एव जातो निष्पनिमोपगूहनसोख्यः ॥] आप्रश्न युद्धाय संवदनं कुर्वतां राक्षसभटानां य एव कामिनीसार्थः समरशङ्कया त्यक्ताश्रुपूरो वृत्तः स एव निष्पश्चिममपुनर्भावि उपगृहनसौख्यमालिङ्गनसौख्यं यस्य तथाभूतो जातः । तथा च संवदनकालीनपरिरम्भणातिरिक्तं परिरम्भणं नास्तीत्यमङ्गलं तात्कालिकाश्रुनिर्गमेन सूचितमिति संग्रामे रक्षसां क्षय उक्तः ॥२१॥ विमला-राक्षसों ने अपनी-अपनी कामिनियों से युद्धार्थ जाने की अनुमति मांगी ! उस समय कामिनियों की आँखों से ( पति के मरण की भावी शङ्का से) जो आँसू गिरे उसी से यह विदित हो गया कि पति द्वारा उनका किया गया यह आलिङ्गन अन्तिम है, अब पुनः नहीं होगा ॥२१॥ अथ रामस्य निद्राभङ्गमाहअह समरन्तरिअसुहो दहमहवेरपरिमञ्चणाअअदिअहो । लद्धामरिसावसरो अलद्धणिद्दो वि राहओ पडिउद्घो॥२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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