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________________ ४६८ ] सेतुबन्धम् [ एकादश ज्ञानजन्यशोकेन पतिताभूत्, तदानीं पुनरुत्थाय निपुणनिभालनोपजात निर्णयवशात्तात्कालिक मोहोत्कर्षेण पुरो दृश्यमानरामशिरः संमुखेवाघोमुखीभूय पतितेति दृष्टिरप्यभीष्टत्रिजटादिमुखं न गता, करोऽप्युरस्ताडनादिव्यापृतो नाभूदिति निरवद्यम् । देहान्तरनैरपेक्ष्येण स्तनभरस्य भूमिसंबन्धादुत्तङ्गिमा काठिन्यं च सूचितमिति केचित् ॥ ६५॥ विमला - राम के सिर को पुनः देखने के बाद भी सीता ने अपनी दृष्टि उसी प्रकार ( पूर्ववत् नीचे की ओर ) रक्खी ( त्रिजटादि अभीष्ट निशाचरियों के मुख की ओर नहीं की ), हाथ भी कपोल से हटा कर हृदय पर ही रक्खा ( उरस्ताडन आदि उन्होंने नहीं किया ) केवल मृतवत् निश्चेष्ट हो स्तन के बल भूमि पर गिर पड़ीं ॥ ६५ ॥ अथ पुनश्चैतन्ये सति पूर्वनिश्चयाप्रामाण्यशङ्कया पुनर्दर्शनेन सुदृढनिर्णयाय पुनरुत्थितेत्याह सो मुच्छिउट्ठआए कि एअं ति गअणे दिसासु अ समअम् । सुणपरिघोलिअच्छं जाअं मूढपरिदेविअं तोअ मुहम् ॥६६॥ [ ततो मूच्छितोत्थितायाः किमेतदिति गगने दिक्षु च समकम् । शुन्यपरिघूर्णिताक्षं जातं मूढपरिदेवितं तस्या मुखम् ॥ ] ततः पुनः पतनानन्तरं प्रथमं मूच्छितायाः पश्चाच्चैतन्ये सत्युत्थितायास्तस्या मुखं मूढस्येव परिदेवितं दुःखप्रकाशनं यत्रेति मूढपरिदेवितमनक्षरपरिदेवितं जातम् । चेष्टयैव परिदेवनं चकारेत्यर्थः । तच्चेष्टामाह - किंभूतम् । किमेतदिति कृत्वा किमेतदित्यभिलप्य गगने दिक्षु च सममेकदैव शून्ये मनोवैकल्येन विषयाग्राहके सति परि सर्वतोभावेन घूर्णिते अक्षिणी यत्र । तथा च - रामपतने सति दिवाकरः प्रकाशत एव, नक्षत्राण्यपि न च्यवन्ते, न वा दिग्दाहधूमवत्वोत्पातपवनादिकं दृश्यते, तत्कथमिति जिज्ञासावशादिति भावः । किमेतदिति कृत्वोत्थिताया इति केचित् ।।६६।। विमला - सीता जी इस प्रकार भूमि पर पुनः गिरने के बाद पहिले तो मूच्छित हो गयीं, तत्पश्चात् चैतन्यावस्था में आकर उठीं और निःशब्द फूट-फूटकर रोने लगीं । तदनन्तर 'यह क्या हो गया' - ऐसा कह कर ( राम का मरण होने पर सूर्य का प्रकाश नष्ट हुआ या नहीं, नक्षत्र आकाश से गिरे या नहीं, दिग्दाह हुआ या नहीं - - यह सब जानने के लिये ) अपने जड़ नेत्रों को आकाश और दिशाओं की ओर एक साथ उन्होंने घुमाया ॥ ६६ ॥ अथ वाक्स्तम्भमाह णिव्वण्णेऊण प्रणं तत्तोहुत्तट्ठिओसियन्तणिमण्णो । काङ्खन्तीअ ण पत्तो अणं मरणं च से कह वि अप्पाणो ॥ ६७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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