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________________ ४६२] सेतुबन्धम् [एकादश के पश्चात् (लङ्केश के भय से) उन्हें कर्तव्य का संस्मरण तो हुआ, किन्तु उस समय वे ( सीता की दशा से दयार्द्र होने के कारण ) मायानिर्मित राम के सिर को सीता के सामने रखने का साहस न कर सके ॥५१॥ अथ शिरःप्रदर्शनमाह अह तेहि तीअ पुरओ छेअसमुव्वत्तमासदिण्णावेढम् । ठवि राहववअण लुअमज्झविलग्गवामहत्थं च धणुम् ।।५२॥ [ अथ तैस्तस्याः पुरतश्छेदसमुद्वृत्तमांसदत्तावेष्टम् । स्थापितं राघववदनं लूनमध्यविलग्नवामहस्तं च धनुः ॥] अथ सीतासमीपगमनानन्तरं छेदेन कर्तनेन समुदत्तमुच्छ्वासितं यन्मांसं तेन दत्तमावेष्टं सर्वतो वेष्टनं यत्र तादृशं राघववदनं लूनश्छिन्नः सन्मध्ये विलग्नः संबद्धो वामहस्तो यत्र । राघवस्येत्यर्थात् । तद्धनुश्च तैनिशाचरैस्तस्याः सीतायाः पुरतः स्थापितम् । तथा च-एकव्यापारेणैव शिरो धनुर्लग्नः करश्च द्वयमपि छिन्न मिति भावः ॥५२॥ विमला-सीता के समीप पहुँचने के कुछ समय पश्चात्, काटने के समय बाहर निकले हुये मांस से वेष्टित राम का सिर तथा धनुष जिसमें राम का कटा हुआ बायाँ हाथ संलग्न था, निशाचरों ने सीता के सामने रख दिया ।।५२।। अथ सीतामोहमाह मालोइए विसण्णा उवणिज्जन्तम्मि वेविसं पाढत्ता । सीआ रप्रणिअरेहि रामसिर त्ति भणिए गअ चिचअ मोहम् ।।५३।। आलोकिते विषण्णोपनीयमाने वेपितमारब्धा । सीता रजनीचरै रामशिर इति भणिते गतव मोहम् ॥] शिरसि दूरादालोकिते सति सीता विषण्णा विषादमुपगता। कस्यैतदिति कृत्वेत्यर्थः । अथ रजनीचरैरुपनीयमाने निकटं प्राप्यमाणे सति वेपितुमारब्धा । ममैव निकटं यदानयन्ति तत्प्रायो रामस्यैव भवेदिति कृत्वा कम्पवती बभूवेत्यर्थः । पश्चातैरेव रामशिर इति भणिते सति निःसंदेहा सती मोहमेव मूर्छामेव गता। नतु मृत्युमपि । सीताजीविताभिन्न रामजीवितस्य विद्यमानत्वादिति भावः ॥५३॥ विमला सीता ने जब सिर को दूर से ही देखा तब ( किसका है-ऐसा सोचती हुई ) विषाद को प्राप्त हुई। राक्षस जब उन्हीं की ओर उसे लेकर चले तब ( यह राम का ही होगा-सोच कर ) कांपने लगी और जब उन्होंने कहा कि यह राम का सिर है तब वे मूच्छित हो गयीं ॥५३॥ अथ सीताया भूमौ पतनमाहपडिमा अ हत्थसिढिलिअणिरोहपण्डरसमूलसन्तकवोला। पेल्लिअवामपओहरविसमुण्ण अदाहिणत्थणी जणअसुआ॥५४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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