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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [४४६ रम्भाशापादयमपि पक्षो नेत्याशयमाशङ्कयाह -- कह विरहप्पडिकला होहिइ समुहहिअआ पइम्मि उवगए । णेच्छइ इअरा वि सनि कि पूण दिम्मि दिणप्रारम्मि कमलिणी ॥२६॥ [ कथं विरहप्रतिकूला भविष्यति संमुखहृदया पत्यावुपगते । नेच्छतीतरथापि शशिनं किं पुनदृष्टे दिनकरे कमलिनी ॥] पत्युविरहे प्रतिकूला मां प्रत्यसंमुखी सीता संप्रति पत्यावुपगते सति कथं संमुखहृदया भविष्यति । अर्थान्तरन्यासमाह-कमलिनी इतरथाप्यनुदितेऽपि दिनकरे शशिनं नेच्छति, किं पुनर्दष्टे सति । तथा च तदानीमिच्छाशङ्कापि नास्तीत्यर्थः । अत्र कमलिनीप्राया सीता, शशिप्रायो रावण : सूर्यप्रायो रामः ॥२६॥ विमला-किन्तु सीता अपने पति के विरह में मेरे प्रतिकूल पहिले से ही है, अब तो उसका पति भी यहाँ पहँच चुका है तो अब वह क्यों मेरे अनुकूल होगी ? कमलिनी सूर्य के उदित न होने पर भी चन्द्रमा को नहीं चाहती तो सूर्य के दिखायी पड़ने पर क्या चाहेगी ? ॥२६॥ अभ्यर्थनादिप्रकारोऽपि नास्तीत्याहअब्भत्थणं ण गेल्इ तिरई तिहुअणसिरीन वि ण लोहे उम् । ण गणेइ सरीरवहं कह मण्णे होज्ज जाणई साणुणा ॥२७॥ [ अभ्यर्थनां न गृह्णाति शक्यते त्रिभुवनश्रियापि न लोभयितुम् । न गणयति शरीरवधं कथं मन्ये भवेज्जानकी सानुनया ॥] __ जानकी अभ्यर्थनां काक्वा याच्चां न गृह्णाति न स्वीकरोति । त्रिभुवनश्रियापि दीयमानया लोभयितु न शक्यते । किमपरमस्माभिः क्रियमाणं शरीरवधमपि न गणयति । तदेवं दैन्योक्तिदानप्राणग्रहणरूपोपायत्रयवैगुण्यान्मन्ये तर्कयामि कथं सानुनया गृहीतानुनया प्रसन्ना भवेत् । न भविष्यतीत्यर्थः। तथा च प्रकारान्तरमनुसरणीयमिति भावः ॥२७।। विमला-जानकी अनुनय-विनय भी नहीं मानती, तीनों लोक की सम्पत्ति देकर भी वह लुभायी नहीं जा सकती और न ही वह मार डाले जाने की परवाह करती है तो जानकी कैसे प्रसन्न होगी? इसके लिये कोई अन्य ही उपाय करना होगा ॥२७॥ अतस्तदेवाहपइमाहप्पणिसण्णा अवमाणि प्रसेससप्पुरिससौडीरा। जइ गवर होज्ज व वसा लुअराहवसीसवंसणा जणअसुआ ॥२८॥ [पतिमाहात्म्यनिषण्णावमानितशेषसत्पुरुषशौटीर्या यदि केवलं भवेद्वा वश्या लूनराघवशीर्षदर्शना जनकसुता ॥] २६ से० ब० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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