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________________ ४०४] सेतुबन्धम् [ दशम दिवसस्य च्छविः शोभा तत्परिशेषेऽवशिष्टभागे क्षीयमाणे सति दीपानामुद्दयोता निर्वलन्ति अभिभावकाभावात्पृथग्भवन्ति । किंभूताः । संध्यारागेण स्थगिता: किंचित्प्रकाशसत्त्वेनावरुद्धप्रसाराः अनन्तरं ईषत्संरुद्धनान्धकारेण कृतः परभागः अन्यतः शोभा येषां ते ॥२३॥ विमला-दिवस के अवशिष्ट भाग के भी क्षीण होने पर दीपों का प्रकाश फैलने लगा, जो अबतक सन्ध्याराग के द्वारा ( कुछ प्रकाश शेष रह जाने से ) अवरुद्ध था, किन्तु अब कुछ अन्धकार बढ़ गया और उसने दीपों की एक दूसरी ही शोभा कर दी ॥२३॥ अथ चक्रविघटनमाहविहडन्तराणिप्रलं उहअतडठिअमिलन्त दिठिरइसुहम् । अवसं चक्काजुअं हुंकाराप्रत्तजीवि वोच्छिण्णम् ॥२४॥ [ विघट्टमानरागनिगडमुभयतटस्थितमिलदृष्टिरतिसुखम् । अवशं चक्रवाकयुगं हुकारायत्तजीवितं व्यवच्छिन्नम् ।। ] चक्रवाक युगं व्य वच्छिन्नं विश्लिष्टम् । कीदृक् । विघट्टमानो निरोधाक्षमो रागोऽनुरागरूपो निगडो यस्य तत् । निगडविघटने व्यवच्छेदो युज्यत एवेति भावः । एवं नद्यादेरुभयकूल स्थितं सद्रत एव मिलन्तीभ्यां दृष्टिभ्यां रतिसुखं यस्य तथाभूतम् । स्थितान्तं दृष्टिविशेषणं वा । एवम् अवशमस्वतन्त्रं हंकाराधीनं जीवितं यस्य तथा। तथा च दृष्टिमिलनेऽपि स्यन्दनिमेषयोरभावेन परस्परं संशयितस्व जीवितस्य स्वस्ववृत्त परिज्ञापनाय कृतेन विरहपीडोद्गमजनितेन वा हुंकारेणानुमित्या धारणमिति भावः ॥२४॥ विमला-चक्रवाक और चक्रवाकी एक-दूसरे से वियुक्त हो गये । अनुराग का बन्धन विघटित हो गया और वह उन्हें रोकने में असमर्थ हो गया। वे ( नदी के ) दोनों तटों पर स्थित रह कर दूर से ही दृष्टि मिलाकर रति का सुख ले रहे थे एवं अवश एक दूसरे की हुङ्कार ध्वनि को सुनते हुये जीवन धारण किये हुए थे ॥२४॥ अथ तिमिरप्रादुर्भावमाह ताव अ तमालकसणो कञ्चणकड व बहलसंझाराअम् । परिपेल्लिऊण अ तमो हिमकद्दमसुरगइन्दणिहसो व्व ठिमो ॥२५॥ [ तावदेव तमालकृष्णं काञ्चनकटकमिव बहलसन्ध्यारागम् । प्रतिप्रेयं च तमो हृतकर्दमसुरगजेन्द्रनिघर्ष इव स्थितम् ॥] यावत्संध्या गच्छति तावदेव तमालवत्कृष्णं तमः कर्तृ बहलं संध्यारागं काश्चनकटक मिव प्रतिप्रेयं अवपात्य स्थितम् । क इव । हृतकर्दमस्य सुरगजेन्द्रस्य निघर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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