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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप - विमलासमन्वितम् [ ४०३ मानः क्वचित्क्वचिल्लग्नत्वात् अत एव विषमः संध्यारागो यत्र सा । एवम् अवधूसरिता दश दिशो यत्र सा । प्रकाशप्रौढिविरहात् एवम् अबद्धमसंबद्धं तिमिरं यत्र । द्वित्रिक्षणोत्तरमागन्तुकत्वेन तदा विरलत्वात् । केचित्तु भवति च प्रकटदीर्घा प्रकटा सती दीर्घा भवति चेत्यर्थमाहुः || २१ ॥ विमला - दिन का अवसान होने पर ( वृक्षादिकों की ) छाया लम्बी हो गयी, किन्तु ( सभी की छाया पूर्वाभिमुखी होने से ) विशेष रूप से किसी एक वृक्ष की छाया पृथक् प्रकट नहीं है । उसमें सन्ध्याराग बराबर नहीं, किन्तु कहीं-कहीं लगा है । दसो दिशायें ( प्रकाश स्वल्प रह जाने से ) धूसरित हो गयीं एवं अभी अन्धकार घना नहीं हुआ है ||२१|| अथ संध्याशान्तिमाह संझा अवमुच्चन्तं जलिअप सम्मन्तहु अवहट्ठाणणिहम् । दूरस्थमिअदिणअरं जाअं संवत्तसरिसरूअं गअणम् ।।२२।। [ संध्यातपमुच्यमानं ज्वलितप्रशाम्यद्भुतवहस्थाननिभम् । दूरास्तमितदिनकरं जातं संवर्तसदृशरूपं गगतम् ॥ ] दूरे अस्तमितो दिनकरो यत्र तद्गगनं संवर्तेन प्रलयेन सदृशं रूपं यस्य तादूग्जातम् । कीदृक् । संध्याकालीनेन संध्यारूपेण वा आतपेन मुच्यमानम् । अत एव प्रथमं ज्वलितं पश्चात्प्रशाम्यन्निर्वाणतां गच्छद्यद्वह्निस्थानं तत्तुल्यम् । यथा यथा संध्या तपत्यागः, तथा तथा श्यामिकोदयात् । संध्यातपदहनयोर्विपदग्निस्थानयोश्च साम्यम् । प्रलयोऽपि संध्यातपरविशून्यः कालानलोपशमान्निर्वाणालातनीलीकृतविश्वश्चेति समता । प्रलयतुल्यतया चागन्तुकतमसा नीलिमातिशयः सूचितः । सव्वत्थेति पाठे सर्वत्र सदृशरूपमित्यर्थः । भविष्यत्तमः प्रागल्भ्यादित्यर्थः ॥ २२॥ । विमला - गगन में दूर दिनकर अस्तंगत हो गया । वह ( गगन ) सन्ध्याकालीन आतप से मुक्त किया जा रहा है, अतएव पहिले ज्वलित और बाद में बुझते हुये अग्निस्थान के तुल्य है । इस प्रकार उस ( गगन ) का रूप प्रलय के सदृश हो गया । विमर्श -- प्रलय भी सन्ध्याकालीन आतप एवं सूर्य से शून्य होता है तथा कालाग्नि के बुझने से विश्व श्यामल हो जाता है ||२२|| अथ दीपोयोतमाह संझार अत्थइआ दरसंरूढन्धआरकअपरभाआ । दिअसच्छविपरिसेसे झिज्जन्ते निव्वलन्ति दीवज्जोप्रा ||२३|| [ संध्यारागस्थगिता दरसंरूढान्धकारकृतपरभागाः । दिवसच्छविपरिशेषे क्षीयमाणे निर्वलन्ति दीपो योताः ॥ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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