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________________ ३६२ ] सेतुबन्धम् [ नवम एवं शार्दूलरवेण विसंष्ठुलं संभ्रान्तम्, अत एव निपतितम्, अथान्योन्यलग्नं मिलितं किनराणां मिथुनं येषु तान्, किंभूतान् तुङ्गस्य तटस्य पर्वतैकदेशस्य निर्झरेण मुखरान् ऊर्ध्वतः पतता शब्दायमानान् । आदिकुलकम् ॥६५-६६ ।। सुवेलोत्कर्षदशया रामदासप्रकाशिता । रामसेतुप्रदीपस्य पूर्णाभून्नवमी शिखा || विमला - इस सुवेल के कृष्णमणिमय गण्डशैलों के प्रदेश में निवास करने वाली सुरबालाओं का अनुराग ( मनोभिनिवेश ) कभी शिथिल नहीं होता है, जहाँ अज्ञात मज के द्वारा ढकेले गये, अतएव गिरते हुये [ तट ] पर्वत-खण्ड के अभिघात से मूच्छित सिंह पुनः उठ खड़ा होता है एवं सिंह की गर्जनध्वनि से डरकर भूतल पर गिरे किन्नरों के जोड़े परस्पर मिलते हैं तथा जो तुङ्ग [ तट ] पर्वत भाग के निर्झर से शब्दायमान हैं ।।६५-६६ ।। इस प्रकार श्री प्रबरसेनविरचित कालिदासकृत दशमुखवध महाकाव्य में सुवेल - वर्णन नामक नवम आश्वास की 'विमला ' हिन्दी व्याख्या समाप्त हुई । Jain Education International 100000— For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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