SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८४ ] सेतुबन्धम् [ नवम विमला – यहाँ वेगवान सूर्य के घोड़े ( कुञ्जकन्दरादि के कारण दिखाई नहीं पड़ते ) इस मार्ग से गये हैं, केवल इतना ही जाना जाता है, क्योंकि मधुकर भ्रमणशील हो रहे हैं, उपत्यका की लताओं में उनके चामरों के धवल रोम ( उलझ कर ) लगे हुये हैं तथा उनकी साँसों से कुसुमपराग उड़ रहे हैं ।। १।। सुरबन्दीसत्तामाह अजणराएण सह धूसरन्तनाई गण्डलेख लिअ विसमोरन्तनाई । सुरबन्दीण णत्रणगलिआई अंसुनाई कम्पलग्राण जत्थ मइलेन्ति अंसुआई ॥८२॥ [ अञ्जनरागेण सदा धूसरायमाणानि गण्डतलेषु स्खलितविषमापसरन्ति । सुरबन्दीनां नयनगलितान्यभ्रूणि कल्पलतानां यत्र मलिनयन्त्यंशुकानि ॥ ] यत्र सुरबन्दीनां रावणेन बन्दीकृत्य स्थापितानां देवस्त्रीणां नयनयोर्गलितान्यश्रूणि । कर्ता णि । कल्पलतानामंशुकानि वस्त्राणि मलिनयन्ति । सकल पदार्थाकरत्वेन तत्र वस्त्राणामपि सत्त्वात् । तैरेवाश्रु प्रोञ्छनात् सांनिध्येनाभ्रूणां स्वत एव पतनाद्वेति भावः । कथमित्यत आह- अश्रूणि किंभूतानि । अञ्जनस्य रागेण वर्णेन सदा धूसरायमाणानि । कज्जलसंपर्काद्धूसरच्छवीनीत्यर्थः । धूसरोऽन्तः स्वरूपं येषामिति वा । अत एव मालिन्यहेतुत्वमिति भावः । सकज्जलाश्रु संपर्कादुभयथाप्यंशुक विशेषणं वा । पुनः किंभूतानि अश्रूणि । विरहात्संतापाच्च दौर्बल्यान्नतोन्नतत्वेन गण्डतलेषु स्खलितानि सन्ति विषममपसरन्ति । दिशि दिशि पतन्तीत्यर्थः ॥ ८२ ॥ विमला - यहाँ ( रावण द्वारा ) बन्दी बना कर रक्खी गयीं सुरबालाओं के नेत्रों के आँसू, जो अञ्जन के वर्ण से धूसर वर्ण हैं तथा उनके कपोलों पर गिर कर वहाँ से चारों ओर गिरते हैं, कल्पलताओं के वस्त्रों को मलिन करते हैं ( क्योंकि जहाँ सकलपदार्थों की सत्ता है वहां वस्त्र भी हैं और उनसे आसुओं का पोंछा जाना अथवा सामीप्य के कारण उन पर उनका स्वतः गिरना स्वाभाविक है ) ॥८२॥ देयत्कर्षमाह- एक्कसिहरे समप्पइ जस्स न सोसविअमलिअदुमसंघाओ । सह दक्खिणुत्तरा अणणहगमनागमण विल लिओ रइवन्थो ||८३|| [ एकशिखरे समाप्यते यस्य च शोषितमृदितद्रुमसंघातः । सदा दक्षिणोत्तरायणनभोगमनागमनविलुलितो रविपथः ॥ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy