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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [३४७ मौलित्वादुत्कर्णा उत्थितक मृगा यत्र तम् । पुरतोऽपि तत्प्रतिरवशतावशात्पश्चादवलोकनाय वेति भावः । जातिरलंकारः ॥१६।। विमला-यहाँ वृक्षों के नूतन पल्लवों की लानी, समुद्र के नमकीन जलशीकरों के स्पर्श से अन्य रूप धारण कर लेती है तथा सिंह-गर्जन से डर कर भागे हुये हरिणों का एक चरण झुका हुआ तथा दोनों कान उठे हुये हैं ॥१६॥ पुनविस्तारमाहकडअपरिपेल्लिआणं र इअर पाअडिअकन्दराभरिमाणम् । अन्भन्तरआिणं परिल्लपासपरिसंठिअं व दिपाणम् ॥ १७॥ [ कटकप्रतिप्रेरितानां रविकरप्रकटितकन्दराभूतानाम् । अभ्यन्तरस्थितानामपरपार्श्वपरिसंस्थितमिव दिशाम् ॥] एवं दिशामपरमार्वे दक्षिणपाचे परिसंस्थितमिव । दक्षिणदिगनुपलम्भादिति भावः । किंभूतानाम् । कटकेन प्रतिप्रेरितानामुत्त रदिगभिमुखीकृत्यापसारितानाम् । एवं रविकरैः प्रकटितासु कन्दरासु भूतानां व्याप्तानाम् । अत एवाभ्यन्तरे स्थितानाम् । तथा च यथा यथा दक्षिणाशातः कटक वृद्धिः, तथा तथोत्तराशां प्रति प्रेरिता दिशो देवादुत्तराशावत्येकैक कन्दरासु पर्यवसन्नाः, तथैव रवेरपि तत्र प्रविष्टस्य तेजोभिरतिप्रकटं लक्ष्यन्त इति व्यञ्जनागम्यं सर्वमिदमोत्प्रेक्षिकं विस्तीर्णतां गमयति । वयं तु दिशामपरपार्श्वे परितो बहिःस्थित मिव । किंभूतानाम् । पूर्वनिपातानियमाप्रतिप्रेरित कटकं याभिस्तासां प्रतिप्रेरितकटकानामित्यर्थः। तथा च दशभिरपि दिग्भिः कन्दरायां प्रविश्य कटकं प्रति प्रेरितम् । अतो दश दिक्प्रान्तेषु ब्रह्माण्डमोलवत्तत्स्थितम् । दिशस्तु कन्दरायामेव पर्याप्ता: । तदुक्तम् -अभ्यन्त रस्थितानामिति ब्रूमः ।।१७।। विमला-यह सुवेलगिरि इतना विस्तृत है कि मानों दशो दिशाओं ने इसकी सूर्य-किरणों से प्रकटित कन्दराभों में व्याप्त होकर [ कटक ] उपत्यका भाग को दूर तक ( अपने दबाव से ) विस्तृत कर दिया है और वे इसके भीतर ही स्थित हैं एवं यह दशो दिशाओं के बाहर चारो ओर स्थित है ।।१७।। उदात्ततामाह'रअणिआसु दूरुग्गअसिहर अणंत सुहणिसण्णमअवण्डिअसिहरअणन्तअम् । कुविअरामभिण्णोअहिवढमरणोल्लिो सिहरलग्गससिमण्डलणीसरणोल्लिअम् ॥ १८ ॥ १. 'रअणीसु' ख. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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