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________________ ३४६ ] सेतुबन्धम् [ नवम विमला-इसके मूलभाग को शेषनाग भारी भार के कारण वारंवार धारण करता है-अपने कतिपय सिरों पर धारण कर अन्य सिरों को विश्राम देता है भौर थकने पर विश्राम पाये हुये सिरों पर पुनः धारण कर थके सिरों को विश्राम देता है, उसका यही क्रम निरन्तर चलता रहता है। प्रलय-मारुत जब पर्वतों को उखाड़ कर यहाँ लाता है तब (ऊपर तथा अगल-बगल अवकाश न होने से । वे यहीं गिर कर चूर्ण हो जाते हैं ।।१४।। वापदसंकीर्णतामाहगहिअजलमेहपेल्लिअणिधाअन्तणिहुअाठि अमहामहिसम् । णिह प्रगअकुम्भलोहि असिला अलोसुक्खबद्धमुत्ताबडलम् ॥१५।। [ गृहीतजलमेघप्रेरितनिर्वाप्यमाणनिभृतस्थितमहामहिषम् ।। निहतगजकुम्भलोहितशिलातलावशुष्कबद्धमुक्तापटलम् ।। गृहीत जलेर्मेधैः प्रेरिताः सन्तो निर्वाघ्यमाणा: सुखीक्रियमाणा अत एव निभृतस्थिता: सूखवशान्निःस्पन्दस्थिता महान्तो महिषा यत्र तम् । उपरि सुरकरतप्तेषू महिषेषु सजातीयबुद्धघा मेर्यथा यथा यन्त्रणलक्षणं प्रेरणं क्रियते तथा तथा महि. षाणां शैत्यलाभादधिकनिश्चलत्वमिति निभृतपदद्योत्यं वस्तु । एवं निहतानां गजानां कुम्भयोर्लोहितेन हेतुना शिलातलेववशुष्काणि सन्ति बद्धानि दृढलग्नानि मुक्तापटलानि यत्र । तथा च सिंहविदारितगजकुम्भस्थमुक्ता: शिलासु पतित्वा संनिहितसूरकरशोषणादतिस्त्यानीभूतरुधिरतया दढीभूय स्थिता इत्यर्थः । इति राक्षसैरप्यगम्यकतिपय देशकत्वं सूचितम् ।।१५।। विमला-यहाँ ( सूर्य की किरणों से तप्त ) भंसे जलपूर्ण मेघों के स्पर्श से सुखी हो निःस्पन्द स्थित हैं। सिंहविदारित गजकुम्भस्थ मुक्तायें शिलाओं पर गिर कर ( सूर्य की किरणों से : रुधिर के गाढ़ा हो जाने के कारण दृढ़ता से स्थित हैं ॥१५॥ पुनस्तदेवाह लवणजलसीहराहअदरुग्वमन्तममद्धपल्लवराअम । सीहरवभीपस्थिणि रञ्चिएक्कचलणदिउक्कण्णमअम् ।। १६ ॥ [ लवणजलशीकराहतदरोद्वमद्रुममुग्धपल्लवरागम् । सिंहरवभीतप्रस्थितनिकुञ्चितैकचरणस्थितोत्कर्णमृगम् ॥] एवं लवणरूपं जलम्, अर्थात्समुद्रस्य, तच्छीक रहतः स्पृष्टोऽत एव दरोद्वमनीषदन्यरूपतां गच्छन् किंचिदेव प्रादुर्भवन्निति वा। द्रुमस्य मुग्धानां नूतनानां पल्लवानां रागो लौहित्यं यत्र तम् । एव सिंहरवेण भीताः सन्तः प्रस्थिताः पलायिता अथ निकुञ्चितमीष भुग्नितमेकं चरणं येषां तथाभूता: सन्तः स्थिता उत्थित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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