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________________ नाश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [ ३२३ विमला-सेतु में लगे हुये किन्तु विषम रूप से स्थित पर्वत को नल जब सम करने के लिये इधर-उधर चलाता तब समुद्र उछल कर सकल वसुधा को आक्रान्त कर लेता और चिरकाल में उसका जल लौटता था ॥७७॥ अथ सिन्धोः स्वल्पावशिष्टत्वमाह लहुइप्रपेसणहरिसिअक इणिवहगिसुद्धसेलपहरवल्लन्तो । णइसोत्तो व्व समदो से उसवेलन्तरे महत्तं वूढो ॥७॥ [लघुकृतप्रेषणहर्षितकपिनिवहनिपातितशैलप्रहारवलमानः । नदीस्रोत इव समुद्रः सेतुसुवेलान्तरे मुहूर्त व्यूढः ।।] लघुकृतमल्पावशिष्टं समाप्त कल्पत्वात् यत्प्रेषणमीश्वराज्ञा तेन हर्षितेन कपिनिवहेन निपातितस्य शैलस्य प्रहारेण वलमानो दोलायमानः समुद्रः सेतोः सुवेलस्य चान्तरे मध्ये नदीप्रवाह इव मुहूर्त व्यूढ उपचितः । स्वल्पतया शैलप्रहारोत्तम्भितजलत्वात्सेतोः सुवेलस्य चान्तरे नदीप्रवाहोऽय मिति संदेहविषयीभूत इत्यर्थः । मुहूर्तमिति तदेव पूरित इति भावः ।।७।। विमला-स्वामी की आज्ञा शीघ्र पूरी कर लेने से हर्षित कपियों के द्वारा डाले गये पर्वतों के प्रहार से दोलायमान समुद्र, सेतु और सुबेल गिरि के मध्य में कुछ समय तक नदी-प्रवाह-सा वृद्धि को प्राप्त हुआ ।।७८॥ अथ रावणक्षोभमाहजह जह णिम्माविज्जइ वाणरवसहेहि से उसंकमसिहरम् । तह तह दहम हहिअ फाडिज्जइ साअरस्स सलिलेण समम् ॥७६।। [ यथा यथा निर्मीयते वानरश्रेष्ठः सेतुसंक्रमशिखरम् । तथा तथा दशमुखहृदयं पाठ्यते सागरस्य सलिलेन समम् ।।] वानरश्रेष्ठः सेतुरूपसंक्रमस्य शिखरमग्रभागो यथा यथा निर्मीयते निष्पाद्यते तथा तथा दशमुखस्य हृदयं सागरस्य जलेन समं पाटयते द्विधा क्रियते । तैरेवेत्यर्थात् । समुद्र सेतुः केनापि कतुन पारित इति क्षोभादिति भावः । सागरजलमपि पाटयते रावणहृदयमपीति सहोक्तिरलंकारः । हृदयस्य समुद्रजलेनोपमानाद्धीरत्वं गम्भीरत्वं च सूचितम् ॥७९॥ विमला-वानर ज्यों ज्यों सेतुरूप संक्रम के अगले भाग का निर्माण करते जाते थे, त्यों-त्यों सागर के जल के साथ ही रावण के हृदय को भी दो भागों में विदीर्ण करते थे ॥७९॥ अथ सेतोः समाप्तिमाहपाआलमिलि प्रमूलो अव्वोच्छिण्णपसरन्तसरिआसोत्तो। ठाणम्रिो वि पडिमो मुहम्मि धरणिहरसंकमस्त सुवेलो।।८०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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