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________________ २७४] सेतुबन्धम् । सप्तम सुवेलादिषु स्खलिताः प्रतिरुद्धगतयस्तदनूत्तम्भिताः स्वाभिघातेनोत्खा(ता)योत्थापिता वेलाशैलानामेव द्रुमनिवहा यैरेवंभूताः सन्त ऊर्ध्वमाकाशं व्याप्य भिद्यन्ते शतखण्डा भवन्तीत्युच्छलनप्रकर्षणाभिघातप्रकर्ष उक्तः । अभिघातोच्छलितमन्यदपि जलं कुत्रचित्स्खलितमूर्ध्वमुत्तिष्ठतीति ध्वनिः ।।५६।। विमला-समुद्र-जल की लहरें, जिनमें महामत्स्य पर्वतों के अभिघात से उमट गये और मूच्छित हो गये, पर्वताभिघात से इतने जोर से उछल कर वेला के पर्वतों से जाकर टकरा गयीं कि अपने अभिघात से वेला-पर्वतों के वृक्षों को उखाड़ती हुई उछल कर आकाश में पहुँच शतखण्ड हो गयीं ॥५६।। सुरमिथुनापयानमाह प्रद्धथमिप्रविसण्ठुलगअजू हारूढसिहरविहलस्स गहम् । जीअं व झत्ति णज्जइ गिरिस्स कुहराहि उग्ग सुरमिहुणम् ॥५७॥ [ अर्धास्तमितविसंष्ठुलगजयूथारूढशिखरविह्वलस्य नभः । जीव इव झटिति ज्ञायते गिरेः कुहरादुद्गतं सुरमिथुनम् ॥] सुरमिथुनं गिरेः कुहरात्कंदरातो झटिति नभ उद्गतं ज्ञायते जीव इव । गिरी निमज्जति निमज्जनशङ्कया नभोगामि सुरमिथुनं न भवति किंतु पयसि मज्जतो गिरेर्जीवः प्राणा एव जीवात्मा वा। तदुद्गमनमेव वृत्तमित्युत्प्रेक्षा । गिरेः कीदृशस्य । अर्धास्तमितं गिरौ मज्जत्यर्धमग्नमत एव विसंष्ठुलं यद्गजयूथं तेनात्मरक्षानिमित्तमारूढेन शिखरेण हेतुना विह्वलस्य । एकत्र मज्जनमपरत्र गजाक्रमण मित्युभयमपि प्राणोत्क्रमणहेतुत्वेन संभावितमिति भावः । केचित्तु तथाभूतेन शिखरेण हेतुना विह्वलस्यात्समुद्रस्य जीवो जलमिव गिरेः सुरमिथुन मुद्गतम् । यथा तज्जलं नभ उद्गतं तथेदमपीति सहोपमा । अपूर्ववस्तुविगमो जीवविगमतुल्य इति ध्वनिः ॥५७॥ विमला-पर्वत जब समुद्र में डूब रहा था, उस समय अर्धमग्न गजवृन्द ( आत्मरक्षा के लिये । चंचल उसके शिखर पर चढ़ गया, जिसके भार से वह पर्वत और भी विह्वल हो गया, उस समय उसकी कन्दरा से शीघ्र सुरमिथुन निकल कर आकाश की ओर जाता ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों पर्वत का जीव निकलकर आकाश की ओर जा रहा था ।।५७॥ कपीनां प्रौढिमाहधरिआ भुएहि सेला सेलेहि दुमा दुमेहि घणसंघाआ। ण वि णज्जइ कि पवआ सेबन्धन्ति प्रो मिणेन्ति णहअलम्॥५॥ [धृता भुजैः शैलाः शैलैमा द्रुमैर्घनसंघाताः । नापि ज्ञायते किं प्लवगाः सेतुं बध्नन्ति उत मिन्वन्ति नभस्तलम् ।। ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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