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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [२७१ विमला-राम ( सेतुबन्धन में इतने मग्न थे कि उन्हें सीता का एकदम विस्मरण हो गया ) केवल उतने ही समय तक सीता उनको हृदय में विरहदुःख का अनुभव कराती थी, जब तक वे न देयों की दशा का अवलोकन करते, जो सामने पड़ गये पर्वतों के विकट शिखरों से प्रेरित तथा उतुङ्ग लहरों से पवन की विषम गति के कारण चञ्चल कर दी गयी थी ।।५१।। अथ समुद्र मूलवति रामशरपक्षोद्ग ममाह दरडढविद्यमवणा उद्धान्ति मिहिकाजलिअसङ्खउला । पाआल लग्गढिमरामसरोलगपत्तणा जलणिवहा ।। ५२।। [ दरदग्धविद्रुमवना उद्धावन्ति सिखिकज्जलितशङ्खकुलाः । पाताललग्नकृष्टरामशरावरुग्णपत्रणा जलनिवहाः ।। ] जलनिवहा उद्घावन्ति । पातालादूर्ध्व मागच्छन्तीत्यर्थात् । कीदृशाः । दरदग्धानि विद्रुमवनानि येषु रामशरानलात् । एबं शिखिन्ना तेनैव कज्जलितानि दग्ध्वा श्यामीकृतानि शङ्खकुलानि येषु । एवं पाताललग्ना: स्थिता अध कृष्टा: स्वोद्ग मेनाकृष्टा रामशराणामवरुग्णा भग्नाः पत्त्रणा पुङ्खगतपक्षविरचना यस्ते । तथा च रामशरमात्रगम्यपातालजलस्यापि क्षोभो गिरिभिर्गत्वा कृत इति भावः ॥५२।। विमला--जिस पातालव्यापी समुद्रजल में प्रविष्ट राम-शर के अनल से विद्रुम-वन किंचित् दग्ध कर दिये गये थे, शङ्खसमुदाय जलाकर श्याम कर दिये गये थे तथा जिसने पाताल तक पहुँच कर ऊपर आते हुए राम के शरों की पूछ की पक्षविरचना को भग्न कर दिया था उसे भी पर्वतों ने पाताल तक पहुँचकर विक्षुब्ध कर दिया और वह पाताल से अब ऊपर की ओर उठकर आ गया ॥५२॥ अथ पातालदर्शनमाह भीअणिसण्णजलअर पलोट्टणिअभरभिण्ण वक्खमहिहरम् । दोसइ विहिण्णसलिलं कुविउद्धाइअभुअंगमं पाआलम् ।। ५३ ।। [ भीतनिषण्णजलचरं प्रलुठित निजकभरभिन्नपक्षमहीधरम् । दृश्यते विभिन्नसलिलं कुपितोद्धावितभुजंगमं पातालम् ।।] विभिन्नं पर्वताभिघातात्पृथग्भूतं सलिलं यस्मात्तथाभूतं सत्पातालं दृश्यते । व्यवधायकस्य जलस्योच्छलनादिति भावः । कीदक । भीताः सन्तो निषण्णा निःस्यन्दमवस्थिता जलचरा यत्र । एवं प्रलुठिता भूमावेव क्वचित्क्वचिनिपतिता निजकभरेण भिन्नो भग्नः पक्षो येषां तथाभूता महीधरा यत्र । उड्डीय पलायितुमुद्यतानां निजदेहभारेणानभ्यासे चोड्डयनासामर्थेन भूमौ पतितानां पक्षभङ्गात्प्रलुठन मिति भावः । वस्तुतस्तु प्रलुठिता भूमौ क्वचित्क्वचित्पतिता निजं यत्कं समुद्रीयं जलं तस्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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