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________________ आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [ २५६ परिपतितजल वर्जनाय धुताः कम्पिताः केसरसटा यैस्ते । तथा च राजकार्यमात्मो पद्रवेऽपि कर्तव्यमिति ध्वनिः ॥३०॥ विमला - वानर एक-एक क्रम से समुद्र में समुचित स्थान पर पर्वतों को फेंकने के लिए) आकाश में चले जाते और वहाँ से अपनी भुजाओं के द्वारा पर्वतों को इतने बेग से फेंकते कि पर्वत का आधा भाग छिन्न-भिन्न हो जाता । ऐसा करके वे शीघ्र ( आकाश तक उछलते हुए ) समुद्रजल से बचने के लिए वहाँ से दूर अलग हट जाते, तथापि गगनोच्छलित जल से आर्द्र हो ही जाते तथा ( ऊपर पड़े हुए जल को गिराने के लिए ) केसरसटा ( गरदन के बालों) को हिलाते और फटकारते थे ॥ ३०॥ जलोच्छलनप्रकर्षमाह दोसs वारंवारं गिरिधाउक्त्तिसलिलरेइद्मभरिम् । पाप्रालं व हसलं णहविवरं व विग्रडोमरं पाआलम् ||३१|| [ दृश्यते वारंवारं गिरिधातोत्क्षिप्त सलिलरेचितभृतम् । पातालमिव नभस्तलं नभोविवरमिव विकटोदरं पातालम् || ] वारंवारं गिरिघातेनोत्क्षिप्तं यत्सलिलं तेन रेचितमुच्छलनदशायां शून्यीकृतं पश्चादवपतनदशायां भृतं पूरितं पातालमिव नभस्तलं दृश्यते । तज्जलेन तस्यापि तथैव रेचितरितत्वात् । उपमानविशेषणस्योपमेयेऽपि प्रतीयमानत्वात् । अत एव व्यञ्जित तद्विशेषणविशिष्टं नभस्तलमिव पातालं दृश्यते । तज्जलस्योभयत्र निरन्तरं गतागतत्वमिति भावः । विकटोदरं तुच्छोदरमित्युभयविशेषणम् । यद्वा पौर्वापर्यमनपेक्ष्य रेचनभरणमात्रविवक्षायां तथाविधसलिलेन रेचितभृतं पतालमिव नभः, नभ इव पातालमित्युभयविशेषणम् । यद्वा तथाविधसलिलेन पूर्व रेचितमेव सद्भुतं नभस्तलं पातालमिव दृश्यते जलपूर्णत्वात् । विकटोदरं तुच्छोदरं पातालं नभोविवरमिव जलस्योच्छलनात् । केचित्तु पातालमिव नभो नभ इव पातालमित्युभयमपि तत्सलिलेन रेचितभृतं दृश्यते । नभ इव पातालं रेचितं तदिव नभो भृतमित्यर्थः । परस्परोपमा हेतुपरिवृत्तिश्चालंकारी ॥३॥ विमला - पर्वतों के गिरने से समुद्र का जल जब बार-बार उछलकर आकाश में पहुँचता उस समय शून्य विकटोदर आकाश, पाताल के समान दिखाई देता और जलशून्य विकटोदर पाताल आकाश के समान दिखायी देता था ||३१|| गिरीणां विशीर्णतामाह संखोह भिण्णमप्रिल गलि प्रजलोलुग्गपङ्कप्रवणुच्छङ्गा विहल गइन्दा लम्बिअ फुडि अपडन्तसिहरा पडन्ति महिहरा ||३२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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