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________________ सेतुबन्धम् २५० ] गिरीणां पतनसांकर्यमाहउक्त्तिविमुक्का णहम्मि एक्केक्कमावडण भिण्णाई । वज्जभउब्विण्णाई व पडन्ति रश्रणाअरे गिरिसहस्साइं ॥ १३॥ नभस्येकैकक्रमावपतनभिन्नानि । [ उत्क्षिप्तविमुक्तानि वज्रभयोद्विग्नानीव पतन्ति रत्नाकरे गिरिसहस्राणि ॥ ] उत्क्षिप्तान्यूर्ध्वं नीतानि सन्ति विमुक्तान्यधः क्षिप्तानि गिरिसहस्राणि रत्नाकरे पतन्ति । कीदृशानि । नभस्येकैकक्रमेण यदवपतनं तेन भिन्नानि । परस्परसंघट्टेन विशीर्णानीत्यर्थः । अत एवोत्प्रेक्षते -- वज्रभयेनोद्विग्नानीव । भीता: संगोपनस्थलमेकदैव प्रविशन्तीति पूर्वं मैनाकादयो वज्रभयाद्यथैव प्रविष्टास्तथैव संप्रत्येते ऽपीत्याशयः ॥ १३ ॥ बिमला - वानरों ने सहस्रों पर्वतों को एक साथ ऊपर फेंका, नीचे आते हुये वे आकाश में टकरा कर विशीर्ण हो गये और मानों वे वज्र के भय से उद्विग्न हो एक साथ ही समुद्र में ( छिपने के लिये ) गिर रहे हों ।। १३ ।। गिरिपतने सत्वरतामाह भिण्णसिलाअलसिहरा मिश्र अदुमोसरि अकुसुमर अधूसरिआ । पढमं पडन्ति सेला पच्छा वाउद्धप्रा महाणइसोत्ता ॥ १४ ॥ [ भिन्नशिलातलशिखराणि निजक मापसरत्कुसुमरजोधू सरिताः । प्रथमं पतन्ति शैलाः पश्चाद्वातोद्धूतानि महानदीस्रोतांसि ॥ ] भिन्नानि विशीर्णानि शिलातलानि यत्र तादृशानि शिखराणि येषां ते शैलाः प्रथमं गुरुत्वात्समुद्रे पतन्ति पश्चात्कंदरोद्गतेन कपिवेगोत्थितेन वा वातेनोद्भूतानि महानदीस्रोतांसि पतन्ति । तथा च शिलातलदलनाद्विच्छिद्य पतदपि नदीजलं वातोद्धूतत्वात्पश्वादेव पततीति भावः । शैलाः कीदृशाः । निजकद्रुमेभ्योऽपरारद्भिः कुसुमरजोभिर्धूसरिताः || १४ || [ सप्तम विमला - ( गिरते हुये ) गयीं तथा पर्वत अपने वृक्षों से समुद्र में पहिले गिरे तथा ( शिलाओं के विशीर्ण होने से हुआ भी ) नदियों का जल ( कपिवेगजन्य ) वायु से पर्वतों के पश्चात् ही गिरा || १४ || पर्वतों के शिखरों की झड़ते हुये कुसुमरज से Jain Education International शिलायें छिन्न-भिन्न हो धूसरित हो गये । वे पर्वत विच्छिन्न होकर गिरता दूर उड़ जाने के कारण जलपतितानां गिरीणां कपिभिर्देर्शनमाह- 1 णिम्मलसलिलब्भन्तरविहत्तदी सन्त विसमगइसंचारा णस्सन्ति निञ्चल ठिप्रपवंगमालोइआ चिरेण महिहरा ||१५|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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