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________________ २१२] सेतुबन्धम् [षष्ठ विमला-वानरों ने अपने वक्ष :स्थल लगा कर जब पर्वतों को उखाड़ा उस समय उनके विस्तृत वक्षःस्थल से नदियों के प्रवाह का मार्ग रुद्ध हो गया, अतएव उनका जल उन पर्वतों के भीतर घूमता रहा, ( अपेक्षाकृत कुछ अधिक हो जाने पर ) ऊपर उठा ( उससे भी अधिक हो जाने पर कन्दरादि निम्न प्रदेशों में ) गिरा और उसने उच्च ध्वनि की ।।३।। अथ सर्पाकृष्टपर्वतोद्ध रणमाहअद्धविखत्तपसिढिले अद्धवह अंगकढिप्रद्धथमिए। उम्मलेन्ति रसाअलपड्रखत्तसरियामहे धरणिहरे ॥४०॥ [ अर्कोत्क्षिप्तप्रशिथिलानर्धपथभुजंगकृष्टार्धास्तमितान् । उन्मूलयन्ति रसातलपङ्कमग्नसरिन्मुखान्धरणीधरान् ॥ ] प्लवगा धरणीधरानुन्मूलयन्त्युत्पाटयन्ति । किंभूतान् । अर्धेन । भूमिस्थमूलभागस्येत्यर्थात् । उत्क्षिप्तात्सतः प्रशिथिलानदृढभूमिसंबन्धान् । एतेन सुखोत्पाटनीयानित्यर्थः । अत एवार्धपथादुत्थितमूलार्धभागावच्छिन्नोपरिदेशाद्भुजंगेन कृष्टात्सतः अर्धन मूलभागोपरिभागार्धनास्तमितान्भूम्यन्तःप्रविष्टान् । अर्धमग्नानित्यर्थः । एवं रसातलपङ्के मग्नानि सरिन्मुखानि येषु तान् । अयमभिप्रायःकपिभिः प्रथममुत्क्षिप्ता गिरयो भूमिष्ठमूलभागार्धभागेनोत्थिता यावत्तावन्मूलवतिना भुजंगेनाकृष्टा: कपिहस्तादप्युपरिभागार्धभागेन रसातलं प्रविष्टा अथ पुनः कपिभिरुत्थाप्यन्ते । तथा च कपिहस्तादाकर्षणाद्भुजंगानां महत्त्वं, उपरिभागार्धभामस्योपरिस्थत्वेऽप्युपरिभागस्थनदीनां रसातलपङ्कमग्नत्वेन तावद्रव्यापकोपरिभागाधंकतया गिरीणामुञ्चत्वं च सूचितम् ॥४०॥ विमला-वानरों ने प्रथम पर्वतों को ऊपर उभाड़ा था। भूमिष्ठ मूल भाग का आधा भाग जब तक ऊपर उठा तब तक भुजंगों से कृष्ट होने से उस ऊपर वाले भाग का भी भाधा भाग नीचे चला गया और नदियों का अग्रभान रसातल पहुंच गया । मब वानरों ने पुनः उन' पर्वतों को ऊपर उभाड़ा ॥४०॥ अथ पर्वतानामुत्पाटनप्रकार माह उज्वेल्लइ वणिराअं पासल्लन्तेसु सिहरपडिमुग्चन्तम् । उक्खिप्पन्तेसु पुणो संबेल्लिज्जइ व महिहरेसु गहमलम् ।।४ १६ [ उद्वेल्ल्यत इव निरायतं पार्थायितेषु शिखरप्रतिमुच्यमानम् । उत्क्षिप्यमाणेषु पुनः संवियत इव महीधरेषु नभस्तलम् ॥] महीधरेषु पायमानेषु नमयितु पार्श्वेन तिर्यगानीयमानेषु शिखरेण प्रतिमुच्यमानं नभस्तलमुद्देल्लयते प्रकाश्यते। कपिभिरित्यर्थात् । तिर्यगानयनेन गिरीना शिखराणामित एवागमनाच्छिबराच्छन्नाकाशस्य प्रकाशो जायत इत्यर्थः । उत्मि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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