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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [१८६ हताः खण्डखण्डीकृता अत एव दिक्षु प्रकीर्णा विक्षिप्ता महीधरा यस्य तम् । अन्योऽप्युड्डयमानः पक्षी शरेण खण्डितो दिक्षु पततीति ध्वनिः । एवं स्फुटितात् शरप्रवेशपर्वतादुत्थानेन सरन्ध्रीकृताज्जलमध्यान्निर्गतो बहिर्भतो यो रत्नोयोतस्तेन संहितं पूरितमुद्भट विवरं येन तम् । खातावच्छिन्नो जलक्षयेण शून्यीकृतो विद्यमानजलस्योपरि नभोभागो विवरं तदन्तर्वतिमणिकिरणरकस्मादुत्थितैरम्बु भरिव पूर्वत इति मणीनां तय तीनां च महत्त्वमुक्तम् ।।८६।। विमला-(अनल से) पंखों को बचाने के लिये पर्वत ऊपर उड़ गये, किन्तु वहाँ भी शर समूह से आहत हो गये और विभिन्न दिशाओं में खण्ड-खण्ड हो गिर गये। जल फोड़कर पर्वतों के निकलने से जल में जो विस्तृत विवर बन गये उन्हें तत्काल जल के अन्दर से मिलती हुई रत्नदि रणों ने भर दिया ।।८६॥ हु उत्तमोवअणि प्रण :पुन्हापितष्ठलमहगाहा । परिवढिएक्कमेक्काणुरायसरपह जिवलि असङ्ख उलम ॥८७॥ इअ सिरिपवरसेणांवर 3 ए कालिदासकए दसमुहवहे महाकव्वे पञ्चमो प्रासासो परिसमतो।। [ हुतवहप्रदीप्तगोपितनिजनयनोष्मविसंष्ठुलमहाग्राहम् । परिवधितैकैकानुरागशरप्रहारनिर्वलितशङ्गकुलम् ॥] इति श्रीप्रवरसेनविरचिते कालिदासकृते दशमुखवधे महाकाव्ये पञ्चम आश्वासः परिसमाप्तः । एवं हुतवहेन प्रदीप्तचोर्दग्धुमारब्धःोरत एव गोपितयोमद्रितयोनिजनयनयोरूष्मणा औरण्येन विसंष्ठ ला दिशि दिशि घूर्णनाना महाग्राहा जनसिंहादयो यत्र तम् । नयनमुद्रणात्तज्ज्वालासंबन्धादूर मति भावः । एवं परिवर्धित एकै स्य परस्परस्यानुरागो येषामेतादशानि सन्ति शरप्रहारेण निर्वलितानि दिशि दिश विच्छिन्नानि शवलानि यन तम् । शद्वानां शरप्रहारेण विच्छिन्नानां मिथोऽनुरागोपचय इति भावः ।। कुलम् ।।८७।। समृद्रावायद शया रामदासप्रकाशिता । रामसेतुप्रदीपस्त्र पूर्णाभूत्पञ्चमी शिखा ।। विमला-राम के शरादल से जलसिंह आदि महाग्राहों के नेत्र जब जलने लगे तब उनकी रक्षा के लिये उन्हें मूंदे हुये वे उष्णता से व्याकुल हो समुद्र में चारों ओर छटपटाते घूम रहे थे तथा शरप्रहार से विच्छिन्न शङ्खसमूहों का पारस्परिक अनुराग वृद्धि को प्राप्त हो रहा था ।।८७॥ इस प्रकार श्रीप्रसरसेनविरचित कालिदासकृत दशमूखबध महाकाव्य में पञ्चम आश्वास की विमला' हिन्दी व्याख्या समाप्त हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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