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________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [१८७ विषधरा यत्र तम् । प्रथमं शरानलेन दग्धा अत एव प्लुष्टतया संचरन्तो विषधरा अकस्माद्रामशरानलमिलनवर्धमानेन' वडवानलेन दूरादपि ज्वलिता इत्यर्थः ।।८१॥ विमला-जल के ऊपर शंखों का समूह लढ़कता चल रहा था और (शरणस्थान न पाने से) विद्धल हो आक्रन्दन कर रहा था। विषधर पहिले ही राम के शरानल से कुछ दग्ध थे अब बड़वानल के स्फुटित हो जाने से और अधिक जलते हुये छटपटा कर चलने लगे ।।८।। झिज्जन्तजलालोइअकिरणमूणिज्जन्तरप्रणपश्वप्रसिहरम् । थोरतरङ्गकराहअदिसालाभग्गपडिअजलहरविडवम् ।।२।। [क्षीयमाणजलालोकितकिरणज्ञायमानरत्नपवतशिखरम् ।। स्थूलतरङ्गकराहतदिग्लताभग्नपतितजलधरविटपम् ॥] एवं क्षीयमाणे जले आलोकितैः किरणैर्जायमानानि तय॑माणानि रत्नपर्वतानां मेनाकादीनां शिखराणि यन तमिति गाम्भीर्यमुक्तम् । एवं स्थूलतरङ्गरूपेण करेणाहतास्ताडिता दिश एव लतास्ताभ्यो भग्नाः सन्तः पतिता जलधरा एव विटपा यत्र तम् । क्षुभितसमुद्रतरङ्गाहता उपरितनमेघा: समुद्र एव पतिता इत्यर्थः । अन्यत्रापि हस्तताडितानां लतानां पत्राणि त्रुटित्वा भूमौ पतन्तीति ध्वनिः ।।२।। विमला-जल क्षीण हो जाने पर, दिखायी पड़ती किरणों से, मैनाक आदि रत्नपर्वतों के शिखरों का ज्ञान हो रहा था तथा स्थूलतरङ्गरूप करों से प्रताडित दिग्लताओं से जलधररूप पते भग्न हो-हो कर समुद्र में गिर रहे थे ॥२॥ साणलसगिद्दारिप्रसकेसरुज्जलिअसोहमअरक्खन्धम् । पासण्णभीअविसहरवेढि प्रकरिम अरधवलदन्तप्कलिहम् ।।३।। [ सानलशर निर्दारितसकेसरोज्ज्वलितसिंहमकरस्कन्धम् । आसन्नभीतविषधरवेष्टितकरिमकरधवलदन्तपरिघम् ।। ] एवं सानलेन शरेण निर्दारितः खण्डि नोऽत एव के सरसहितः सन्नूवं ज्वलितः सिंहमकरस्य जलसिंहस्य स्कन्धो यत्र तम् । स्कन्धे शरसंबन्धेन केसराणामपि दाहात् । एवमासन्नैनिकटवर्तिभिर्भीतैः शरानलात् विषधरैर्वेष्टिताः करिमकराणां जलहस्तिनां धवला दन्ता एक परिचा यत्र तम् । दाहपीडिताः सर्पा: किंचिदवष्टम्भेन वक्रीभवन्तीति लोके दृष्टम् । स्तम्भाकृतिरायुधविशेषः परिघः ॥८३।। विमला-जलसिंह का स्कन्ध आग्नेय शर से स्वण्डित हो केसर ( गरदन के बाल ) सहित जल गया। ( शरानल से ) भीत निकटवर्ती विषधर, जलहस्ती के धवल दन्त रूप परिचय ( स्तम्भाकार आयुधविशेष ) में लिपट गये ।।८३॥ धुअपव्व असिहर पडन्तमणिसिनाभग्मविद्दुमलावेढम् । दरडड्ढवित झिजविसपङ्कक्खुत्तविहल करिमअर उलग ।।८४!. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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