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________________ आश्वासः ] रामसेतु प्रदीप- विमलासमन्वितम् नात् । निपातितमहीधरनिवहो वा । महीधराणां कूटेषु विकटस्तेषामुच्चत्वादयमप्युच्चः । महीधरकूटव द्विकट उच्चत्वाद्गिरिशृङ्गाकार इति वा ॥ ६८|| विमला - राम का शरानल ऐसा बढ़ा कि उसने मकरालय ( समुद्र ) को ऊपर उठा दिया, ( घृतादिसदृश ) मकरों की चर्बी और मांस से उसकी लपटें अनियन्त्रित हो गयीं, ( इन्धनसदृश ) पर्वतसमूहों को जलाकर उसने विनष्ट कर दिया और वह पर्वतशृङ्ग के समान ऊँचा एवं भयङ्कर दिखायी पड़ "रहा था ॥ ६८ ॥ जलस्योद्धतिमाहजलत्थङ्घि अमूला • पतिणणिसुम्भन्ता । णिवडन्ति जलुप्पीडा पडिलोमाग पडन्तविश्रावत्ता ॥ ६९ ॥ [ ज्वलनोत्तम्भितमूला बाणोत्क्षिप्तपरिवर्तननिपात्यमानाः । निपतन्ति जलोत्पीडाः प्रतिलोमागतपतद्विकटावर्ताः ॥ ] जलोत्पीडा निपतन्ति । आकाशादित्यर्थात् । किंभूताः । ज्वलनोत्तम्भितमुत्थापितं मूलं येषां ते । दहन प्रेरितमूर्ध्वं गच्छतीति वनदाहादौ दृष्टत्वादिति वह्निप्रकर्षः । एवं बाणेनोत्क्षिप्ताः सन्तः परिवर्तनेनाधोमुखीभावेन निपात्यमानाः । प्रथमं वह्निभिरुत्थापितमूलाः पश्चाद्बाणेनोध्वं नीताः । अनन्तरं यथोर्ध्वक्षिप्तं काण्डादिफलभागेनाधः पतति गुरुद्रव्यस्वाभाव्यात्तथा तद्बाणस्यामीभिर्मु खलग्नतया फलस्थानीयत्वेन परिवर्तने कृते स्वयमप्यधोमुखीभूय पतन्तीत्यर्थः । अत एव प्रतिलोमागता विपरीतक्रमेणागताः । अधोमुखा इति यावत् । एवंभूताः पतन्तो विकटावर्ता "यत्र । तथा च जलस्योच्छलनकाले आवर्तस्तथैव स्थित इति शरवेगप्रकर्षः । पत्लनकालेऽपि तथैव स्थित इति जलबाहुल्यम् । पातालं गता अपि शरा उत्थिता इति रामप्रभावप्रकर्षः । शरेणोत्क्षिप्ताः शरं विनैव नभो गत्वा पतन्तीति केचित् ॥६६॥ - विमला - ( राम का शर पाताल तक जा कर पुनः जब वेग से ऊपर को चला उस समय उसके ) अग्निज्वाला से समुद्र के जल का नीचे वाला भाग ऊपर उठा दिया गया और आकाश को वेग से जाते हुये बाण ने सारें जल को इतने वेग से ऊपर आकाश को पहुँचा दिया कि जल के विकट आवर्त ( भँवर ) पूर्ववत् बने रहे । पुनः बाण अधोमुख हो जब नीचे को आने लगा तो उसके वेग से सारा जल विपरीतक्रम से ( अधोमुख ) आकाश से गिरने लगा और इस बार भी विकट आवर्त ज्यों के त्यों बने ही रहे ॥ ६६ ॥ सागरस्य महत्त्वमाह धूमा जलइ बिडइ ठाणं सिढिलेइ मलइ मलउच्छङ्गम् । धीरस्स पढमइण्हं तह विहु रक्षणाअरो ण भञ्जइ पसरम् ॥७०॥ Jain Education International [ १८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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