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श्री धन्यकुमार चरित्र जमा हैं तबतकही मोक्ष सुखका उपाय भी बन सकेगा और जहां बुढ़ापा शरीरमें घुस गया फिर तप और व्रतका पालन कोसों दूर हो जाता है।
ईसलिये जो लोग संसारसे छूटना चाहते हैं उन्हें जबतक इन्द्रियां अपना२ काम अच्छी तरह कर सकती हैं तभीतक. संयम ग्रहण कर लेना उचित है। क्योंकि जिन लोगोंकी इन्द्रियां ठण्डो पड़ जाती हैं वे फिर संयमके योग्य नहीं हो सकते और बिना संयमके तप व्रत वगैरह सार्थक नहीं कहे" जा सकते ।
मनुष्य तो यह विचार करता रहता है कि आज वा कल अथवा कुछ दिनों बाद तप और व्रत धारण करूंगा और काल है सो पहले ही आ धमकता हैं। यह जीवन चारेके अग्रभाग पर ठहरी हुई ओसकी बिन्दुकी तरह जल्दी नाश होनेवाला है और युवावस्था बादलकी तरह देखते२ नाश हो जायगी।
लक्ष्मी वेश्याकी तरह चपल और बुरी है। चोर, शत्रु और राजा वगैरह सदा इसमें छीनने की फिराकमें रहते हैं, दुःखकी देनेवाली है और दुःखहीके द्वारा कमाई जाती है । राज्य धूलके समान बुरा, सब पापका कारण, चंचल और हजारों चिन्ताओसे भरा हुआ है। कौन बुद्धिमान ऐसे राज्य का पालन कर सुखी होगा ? स्त्रियां मोहकी बेलि, सब अनर्थं अन्यायको कारण और दुष्ट होती हैं । ___घरमें रहना पाप और आरम्भका स्थान है। शरीर रुधिरादि सात धातुओंसे भरा, अपवित्र दुर्गंधित और इन्द्रियरूपी चोरोंके रहनेका घर है इसे कौन भला चाहनेवाला भोगोंके द्वारा पुष्ट करना चाहेगा ? ___ भोग हर वक्त भले ही भोगे जांय, परन्तु हैं असन्तोष और पापहीके कारण । अरे ! ये होते तो स्त्रीके अपवित्र
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