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________________ २ ] श्री धन्यकुमार चरित्र पहिला अधिकार ग्रन्थारम्भ | गर्भकत्याण, जन्मकलयाण, दीक्षाकल्याण, ज्ञानकल्याण और निर्वाणकल्याणके अनुभोक्ता, त्रिभुवनके स्वामी, शिवरमणीके नाथ तथा गुणोंके समुद्र श्री वर्द्धमान जिनभगवानके लिये मैं नमस्कार करता हूँ ||१|| अन्तरंग तथा बहिरंग लक्ष्मीसे विभूषित, आरंभ में धर्मतीर्थ के प्रवर्तन करनेवाले, धर्मके स्वामी तथा अनंत गुणोंके आकर श्री वृषभनाथ भगवानके लिये मैं नमस्कार करता 11211 सम्पूर्ण मंगल के करनेवाले, लोकश्रेष्ठ, सज्जन पुरुषोंके 'लिये आश्रयस्थान तथा जगतके हित करनेवाले शेष समस्त तीर्थंकरों को मैं नमस्कार करता हूँ ॥३॥ मनुष्य देव और विद्याधरोंके अधिपति तथा गणधरादिसे विशोभित, ढाईद्वीपमें विहार करनेवाले जो श्री श्रीमंधरस्वामी प्रभृति मोक्षमार्ग के प्रकाश करनेवाले बीस तीर्थंकर हैं उन्हें 'विनत मस्तक से मैं नमस्कार करता हूँ ।।४-५।। ये उपयुक्त तीर्थंकर तथा और जो त्रिकाल में होनेवाले हैं, मेरे द्वारा नमस्कार तथा स्तवन किये हुये वे सब मेरे आरम्भ किये हुये कामकी सिद्धिके लिये हों ॥ ६ " ज्ञानावरणादि आठ कर्म तथा शरीरसे विरहित सम्यस्वत्वादि आठ महागुणोसे विभूषित, तीन लोकके शिखर पर आरूढ़, इन्द्र धरणेन्द्र चक्रवर्ती आदिसे नमस्कार किये हुये, अनंत गुणोंके स्थान तथा उत्त मगु णोंको अभिलाषा करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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