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ॐ नमः सिद्ध भ्यः।
भट्टारक श्री सकलकीर्तिजी विरचित
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। श्री धन्यकुमार चरित्र
[भाषानुवाद] श्री शोभित तुव वदनशश, हरै जगतजन ताप । इह कारण पदपद्य तुव, नमहं नाथ ! गतपाप ॥ शिव-सुखदायक आपको, कहैं जगतमें लोक। क्यों न हरी भव-गहनवन, भ्रमण नाथ ! हे शोक । अखिल अमित भूलोकमें, तुम सम नहीं दयाल । दयापात्र फिर क्यों न मैं ? विभो ! दीनदयाल || आनंदकंद जिनेश ! अब, गह करके मम हाथ । अतिगंभीर जगजलधिसे, करौ पार जननाथ ! सकलकीर्ति मुनिराजने, संस्कृतमें सुविशाल । विरचौ धन्यकुमारको, चरित अमित गुणमाल || तिहिं भाषा मैं अल्पधी लिख स्वपर सुख हेत: इस महान शुभकार्यमें नाथ ! बनहु सुखसेतु ।।
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