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द्वितीय अधिकार
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कुटुम्बीके इस प्रकार बचन सुनकर धन्यकुमार बोलाअस्तु, यह मेरा ही धन रहै । मैंने तुम्हारे लिये दिया तुम प्रयत्नपूर्वक पुण्योपार्जन तथा सुखके लिये इसका उपयोग करो । विभो ! आपका मेरे ऊपर बड़ा भारी अनुग्रह है इस प्रकार धन्यकुमारसे कहकर कुटुम्बी फिर उसे मस्तक से प्रणाम कर यों कहने लगा ॥५३॥
हे नाथ ! मैं कुटुम्बी ग्राममें रहता हूँ और मेरा नाम भी कुटुम्बी है। यदि किसी समय मेरे योग्य कोई कार्य हो तो आप शीघ्र ही मुझे सूचना करना । यों प्रार्थना पुरस्सर पुनः
नमस्कार कर चला गया || ५४॥
उधर धन्यकुमार भी रवाना हुआ तो उसे रास्ते में जाते वक्त पूर्वोपार्जित शुभोदयसे मनोहर तथा निर्जन्तु किसी शुद्ध स्थान में बैठे हुये अवधिज्ञानसे युक्त, निरन्तर धर्मोपदेश देनेवाले, तोन जगतके जीवोंका हित करनेवाले और गुणोंके समुद्र मुनिराज दीख पड़े || ५६-५७।।
धन्यकुमार उनके दर्शन से हृदय में बहुत आनन्दित होकर उनके समीप गया। मुनिराजको तीन प्रदक्षिणा दी और हाथ जोड़कर देवतार्च्य उनके चरणोंकी अभिवन्दना की तथा धर्म प्राप्ति के लिये उनके पास हर्षपूर्वक बैठ गया ।।५८-६० ।। मुनिराजने भी उसे धर्मवृद्धि देकर उसकी शुभाशीर्वादसे प्रशंसा की और इस प्रकार धर्मोपदेश देने लगे - कुमार ! जिस धर्मके प्रभावसे पद पदमें तुम्हें खजाना मिलता है, बड़ा भारी लाभ होता है, सर्व जगह मान्यता होती है जो इस लोक तथा परलोकमें हित करनेवाला हैं, स्वर्ग सुख तथा शिवसुखका आधार है और जिनेश्वर, चक्रवर्ती तथा इन्द्रपदकी सम्पत्तिका देनेवाला है उसी धर्मका तुम्हें सेवन करना चाहिये ||३३||
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