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________________ २२ ] श्री धन्य कुमार चरित्र क्योंकि धर्मके फलसे धर्मात्माओंको तीन जगतको लक्ष्मी.. जन्य सुख, धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष ये चार पुरूषार्थ और उत्तम२ पदकी प्राप्ति होती है ॥६४॥ उस धर्मको जिन भगवानने मुनि-धर्म तथा गृहस्थ-धर्म इस प्रकार दो भेद रूप कहा है। उसमें मुनिधर्म सम्पूर्णतासे होता है । और गृहस्थ धर्म एक देश रूप दयामय है। घोर मुनिराज मुनिधर्मके द्वारा उसी पर्यायसे अनन्त सुख शाली मोक्षको प्राप्त होते हैं ।।६५-६६।। __ अथवा सर्वार्थसिद्धि के सुखका उपभोग कर सर्वाज्ञावस्था को प्राप्त होते हैं व बड़ा भारी चक्रवर्ती पद पाते हैं अथवा चरम शरीर होकर उत्तमर तपश्चरणके द्वारा क्रमसे मोक्ष चले जाते हैं ।।६७-६८।। और गृहस्थधर्मके द्वारा बुद्धिमान पुरुष सर्व ऋद्धियोंके समूहका आश्रय भूत अच्युत स्वर्ग पर्यन्त स्वर्गमें वा सत्पुरूषोंके द्वारा सेवनीय तथा सम्पत्तिके आकर अर्चनीय उत्तम कुलमें अवतार लेते हैं और वहां सुख भोग कर अनुक्रमसे तपश्चरण द्वारा कर्मोका नाश कर मोक्ष चले जाते हैं ।।६९-७०॥ हे चतुर ! इन दोनों धर्मका मूल कारण, चंद्रमाकी तरह निर्मल, निःशंकादि आठ गुणोंसे युक्त शंकादि पच्चीस मल रहित, जिन भगवान तथा इन्द्रादिकी संपत्तिका कारण, उत्तम२ सुखका आकर सम्यग्दृष्टि पुरुषोंके साथ जाने वाले शुद्ध सम्यक्त्वको समझो। वीतराग भगवानको छोड़ कर सुखोपभोग तथा मोक्षके कारण त्रिभुवन अर्चनीय और कोई देव नहीं हैं, न हुये तथा न होंगे ॥७३॥ जिन भगवानके कहे अहिंसा धर्मको छोड़कर दूसरे धर्म सब ऋद्धि तथा सुखके कारण और सत्य नहीं हैं ॥७४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001883
Book TitleDhanyakumar Charitra
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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