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[समराइकहा कहिपि सत्थवाहपुत्तो। तीए भणियं-देव, न दिट्टो ति । तओ पुच्छिओ धरणो-सत्यवाहपुत्त, अवि एसा ते भारिया। धरणेण भणियं-देव, किमणेन पुच्छिएण; सुयं देव देवेणं, जं जंपियमिमीए। राहणा भणियं-सत्थवाहपत्त, अओ चेव पच्छामि। धरणेण भणियं-देश, जह एवं देवस्स अणबंधो ता आसि भारिया, न उण संपयं ति । राइणा भणियं - एसो सत्यवाहपुत्तो दिवो तए आसि धरणेण पणियं-देव, एसो चेव जाणइ ति । राइणा भणिओ सुवयणो-सत्यवाहपुत्त, किं दिट्ठो तुमए एस कहिपि । सुवयणेण भणिणं-देव, मए ताव एसो न दिट्ठो त्ति । राइणा भणियं-होउ, कि एइणा%B साहेह तुम्भे कि एत्थ रित्थमाणं। सुवयणेण भणियं- देव, एत्थ खल दससहस्साणि सोवण्णिगाण इट्ठासंगडाणं, अन्न पि थेवयं खु सुरित्तं भण्डं ति। पच्छिओ इयरो वि । धरणेण भणियं-देव, एवमेयं । राइणा भणियं-भो किपमाणा ख ते संपुडा। धरणेण भणियं-देव, न याणामि । राणा भणियं-कहं निययभण्डस्स वि पमाणं न याणासि । धरणेणं भणियं- देव, एवं चेव ते कया, जेण न जाणामि । तओ पुच्छिओ सुवयणो । भद्द, तुम साहेहि । तेण भणियं-देव, अहमवि निसंस्सयं न पार्थवाहपुत्रः । तया भणितम् -देव ! न दृष्ट इति। ततः पृष्टो धरणः । सार्थवाहपुत्र ! अप्येषा ते भार्या । धरणेन भणितम् -देव ! किमनेन पृष्टेन, श्रुतमेव देवेन यज्जल्पितमनया। राज्ञा भणितम्सार्थवाहपुत्र ! अत एव पृच्छामि। धरणेन भणितम् – देव ! यद्येवं देवस्यानुबन्धः, तत आसीद भार्या, न पुनः साम्प्रतमिति। राज्ञा भणितम् - एष सार्थवाहपुत्रो दृष्टस्त्वयाऽऽसीत् ? धरणेन भणितम् –देव ! एष एव जानातीति । राज्ञा भणितः सुवदनः - सार्थवाहपुत्र ! किं दृष्टस्त्वयष कुत्रापि । सुवदनेन भणितम् -- देव ! मया तावदेष न दृष्ट इति । राज्ञा भणितम् - भवतु, किमेतेन, कथयत युयम्, किमत्र रिक्थमानम् । सुवदनेन भणितम्-देव ! अत्र खलु दश सहस्राणि सौर्णिकानामिष्टासम्पुटानाम्, अन्यदपि स्तोकं खलु सुरिक्तं भाण्डमिति । पृष्ट इारोऽपि । धरणेन भणितम् --- देव ! एवमेतद् । राज्ञा भणितम् -- भोः किंप्रमाणाः खलु ते सम्पुटाः । धरणेन भणितम्- देव ! न जानामि। राज्ञा भणितम् -कथं निजभाण्डस्यापि प्रमाणं न जानाति धरणेन भणितम्-देव ! एवमेव ते कृताः, येन न जानामि । ततः पृष्ट: सुवदनः । भद्र ! त्वं कथय । तेन भणितम्-देव,
सार्थवाहपुत्र को देखा है ?" उसने कहा - "देव ! मैंने नहीं देखा है।" तब धरण से पूछा -- "सार्थवाहपुत्र ! यह तुम्हारी पत्नी है ?" धरण ने कहा-“देव ! यह पूछने से क्या, इसने जो कहा वह आपने सुन ही लिया।" राजा ने कहा"सार्थवाहपुत्र ! इसीलिए पूछता हूँ।" धरण ने कहा -- "महाराज ! यदि ऐसा है तो यह (मेरी) पत्नी थी, अब नहीं है ।'' राजा ने पूछा-'इस सार्थवाहपुत्र को तुमने देखा था ?" धरण ने कहा- “महाराज ! यही जानता है।" राजा ने सुवदन से पूछा -"सार्थवाहपुत्र ! क्या तुमने इसे कहीं देखा है ?" सवद ने कहा-"महाराज ! मैंने इसे नहीं देखा।" राजा ने कहा - "अच्छ , इससे क्या, आप लोगों से कहता हूँ- सम्पने इस समय कितनी है?" सुवदन ने कहा - "देव ! सोने की दस हजार गोनाकार ईटें हैं। कुछ और भी सुन्दर चीजें हैं ।" दूसरे से भी पूछा। धरण ने कहा-"देव! ऐसा ही है।" राजा ने कहा -"तुम्हारा माल कितना है?" धरण ने कहा-"महाराज! नहीं जानता है।" राजा ने कहा - "क्या अपने माल का भी प्रमाण नहीं जानते हो?" धरगने कहा-"इसी प्रकार वे बनाये गये थे, जिसमे नहीं जानता हूँ।" तब सुवदन से पूछा--"भद्र ! तुम कहो।" उसने कहा - "देव ! मैं भी निःसन्देह नहीं
.१ मए सो न दियो - क
. रित्यरमाणं-क । ३. सिरिभंडं 'त- । ४, 'राइणा' इत्यधिक:-
५, याणामि-क। .
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