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नवमो भबो]
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केरिसओ सो राया कोइसरूवं च होइ तन्नयरं। केरिसओ तत्थ जणो किविस्सिट्टो य परिभोगो॥१०४४।। सो साहिउं न सक्कइ उवमारहियम्मि तत्थ रणम्मि। ते विति तत्थ उवमा पत्थरगुहरुक्खमालेसु ॥१०४५॥ भक्खाणं च फलाइ जुवईसु पुलिंदयाण जुबईओ। आभरणेसु य गुंजा विलेवणं गेरुयाईसु॥१०४६॥ सो साहेउं वंफइ नयरस्स गुणे जहट्ठिए तेसि । निव्वाएऊण मुहं पुणो वि तुहिकाओ ठाइ ॥१०४७॥ एवं उवमारहिओ न तीरए एत्थ साहिउं मोक्खो। नवरं सद्दहियव्वो न अन्नहा भणइ सव्वन्नू ॥१०४८।। न वि अस्थि माणसाणं तं सोक्खं न वि य सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं अव्वाबाहं उवगयाणं ॥१०४६॥
कीदृशः स राजा की दृशरूपं च भवति तन्नगरम् । कीदृशस्तत्र जनः किंविशिष्टश्च परिभोगः ।।१०४४।। स कथयितुं न शक्तोति उपमारहिते तत्रारण्ये । तान् ददाति तत्रोपमाः प्रस्तरगुहावृक्षमालेषु ।।१०४५।। भक्ष्याणां च फलानि युवतिषु पुलिन्द्राणां युवतयः। आभरणष गुञ्जा विलेपन गरुकादिषु ॥१०४६॥ स कथयितुं काङ क्षति नगरस्य गुणान् यथास्थितान् तेषाम् । निर्वाच्य मुखं पुनरपि तूष्णोक स्तिष्ठति ।।१०४७॥ एवमुपमारहितो न शक्यतेऽत्र कथयितुं मोक्षः। नवरं श्रद्धातव्यो नान्यथा भणति सर्वज्ञः ॥१०४८।। नाप्यस्ति मानुषाणां तत् सौख्यं नापि च सर्वदेवानाम् । यत् सिद्धानां सौख्यमव्याबाधामुपगतानाम् ॥ १०४६ ।
'वह राजा कैसा है ? उस नगर का रूप कैसा है ? वहाँ पर लोग कैसे हैं और परिभोग कैसा है ? उस उपमारहित जंगल में वह शबर बता नहीं पाता है। उन लोगों को वहाँ पत्थर, गुफा, वृक्ष, माला, खाने योग्य वस्तुओं, फल, युवतियों में शबर युवतियों, आभूषणों में गुंजा तथा गरुक आदि के विलेपन की उपमा देता है । वह उन लोगों से नगर के यथार्थ गुण कहना चाहता है, किन्तु मुख से न कह पाने के कारण चुपचाप रहता है। इसी प्रकार यहाँ उपमारहित मोक्ष का कथन नहीं किया जा सकता, केवल ऐसी श्रद्धा करना चाहिए, क्योंकि सर्वज्ञ झूठ नहीं बोलते हैं । अव्याबाध को प्राप्त हुए सिद्धों का जो सुख है वह मनुष्यों और समस्त देवों का भी नहीं है ॥' १०४४-१०४६॥
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