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________________ नवमो भवो] ८२५ पायमलेहि वज्जतपुण्णाहतूरं गंभीरबंदिमंगलरवेण पवत्तपिट्ठाययरयं सोहियं सिंदूरधूलोए आउलं अंतेउरेहि मिलंतरायलो महया विमद्देण विसेसियतियसलोयं जायं महावद्धावणय। परिउट्टो राया। गणाविओ वारेज्जदियहो । साहिओ जोइसिएहि-देव,अज्जेव पंचमीए सोहणो त्ति । राइणा भणियंसुट्ट सोहणो। समाइट्टा अमच्चा। करेह विवाहसंजत्ति कुमारस्स । तेहि भणियं-देव, धन्नो कुमारो, कया चेव संजत्ती । किमेत्थमवरं कायव्वं । तहावि जं देवो आणवेइ। आइट्ठोणेहि भंडारिओ। मह, रयणायर, निरूवेहि पहाणमुहपंतोओ, समप्पेहि देवीण, नीणेहि नाणाहरणं, निउंजेहि दायए। तेण भणियं-जं अमच्चा आणवेंति, न एत्थ मे विलंबो। भणिओ चेलभंडारिओ-भद्द देवंगनिहि, पयडेहि देवंगाई, संपाडेहि परियणस्स, संजत्तेहि राय देवीण जोगाई, कारावेहि उल्लोयं । तेण भणयं --जं अमच्चा आणति, सव्वं सज्जमेयं । भणिओ महाउहबई-भद्द महामायलि, निस्वेहि महापहाणाउहाई, समप्पेहि नरकेसरीणं, नाणेहि रहवरे, निउंजेहि विविहसोहाए। तेण भणियं-जं द्भिः पात्रमूलैर्वाद्यमानपुण्याहतूर्यं गम्भीरबन्दिमङ्गल रवेण प्रवृत्तपिष्टातक रजः शोभितं सिन्दरधल्याऽऽकलमन्तःपुरमिलद्रराजलोकं महता विमण विषितत्रिदशलोकं जात महावर्धापनकम । परितुष्टो राजा। गणितो विवाहदिवसः। कथितो ज्योतिषिकः- देव, अद्यैव पञ्चम्यां शोभनइति । राज्ञा भणितम्-सुष्ठ शोभनः । समादिष्टा अमात्याः । कुरुत विवाहसंयात्रां कमाररय। तैर्भणितम्-देव ! धन्यः कुमारः, कृतव संयात्रा। किमत्रापरं कर्तव्यम् । तथापि यद् देव आज्ञापयति । आदिष्टस्तैर्भाण्डागारिकः-भद्र रत्नाकर ! निरूपय प्रधान मुख पंक्तीः (प्रधाशभसामग्रीः ?), समर्पय देवीनाम्, नय (निष्कासय) नानाभरणम्, नियुङ क्ष्व दायकान् । तेन भणितम्यदमात्या आज्ञापयन्ति, नात्र मे विलम्बः । भणितश्चेलभाण्डागारिक:-भद्र ! देवाङ्गनिधे ! प्रकटय देवदूष्यानि, सम्पादय परिजनस्य, संयात्रय राजदेवो नां योग्यानि, कारयोल्लोचम् । तेन भणितम्-यदमात्या आज्ञापयन्ति; सर्वं सज्जमेतत् । भाणतो महायुधपतिः - भद्र महामातले ! निरूपय महाप्रधानायुधानि, समर्पय नरकेसरिणाम, न्य (निष्कासय) रथवरान्, नियुङ क्ष्व ! विविधशोभया (सुभटानाम् ?) । तेन भणितम् - यदमात्या आज्ञापयन्ति, सम्पन्नमेवैतद् । भणितो थे, नर्तक नाच रहे थे, पुष्याह नामक बाजा बजाया जा रहा था, बन्दियों का गम्भीर मंगल शब्द हो रहा था, चूर्ण की धलि उड़ रही थी, सिन्दूर की धूलि शोभित हो रही थी, अन्त.पुर आकुल हो रहा था, राजा लोग मिल रहे थे तथा अत्यधिक भीड़ के कारण स्वर्गलोक की विशेषता को जो उत्पन्न कर रहा था-- ऐसा बहुत बड़ा उन्सव हुआ। राजा सन्तुष्ट हुआ । विवाह के दिन की गणना करायी। ज्योतिषियों ने कहा-'महाराज ! आज पंचमी ही शुभ है।' राजा ने कहा- 'ठीक है, शुभ है।' मन्त्रियों को आज्ञा दी-'कुमार की विवाहयात्रा कराओ।' उन्होंने कहा-'महाराज ! कुमार धन्य हैं। विवाहयात्रा की ही जा चुकी और क्या करना है तथापि जो महाराज की आज्ञा।' उन्होंने (अमात्यों ने) भण्डारी को आज्ञा दी-'भद्र रत्नाकर ! प्रधान शुभ सामग्री को दिखाओ, महारानियों को समर्पित करो, अनेक आभरणों को निकालो, देनेवालों को नियुक्त करो।' उसने कहा- 'जो आमात्य आज्ञा दें, इसमें मुझे विलम्ब नहीं है।' वस्त्रों के भण्डारी से कहा - 'भद्र देवांगनिधि ! वस्त्रों को निकालो, परिजनों को दो, महारानियों के योग्य वस्त्र भिजवाओ, चाँदनी लगवाओ ।' उसने कहा-'जो मन्त्री — आज्ञा दें। ये सब तैयार हैं।' महायुधपति से कहा – 'भन्न महामातलि ! प्रमुख बड़े आयुधों को दिखलाओ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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