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________________ अट्ठमो भवो] ७७३ मिमेहि धम्मवतंतो। गयाइं गणिणीसमीवं, सुया धम्मदेसणा। समागयाणि उचियसमएण । एवं च पइदिणं धम्मजोगाराहणपराण अइक्कंतो कोइ कालो। भावियाणि धम्मे । कालक्कमेणेव समुप्पन्नो रयणवईए पुत्तो। नतुयमुहदसणकयत्थत्तणेणं च कुमारं रज्जे अहिसिंचिय पव्वइओ मेत्तीबलो। कुमारो वि जाओ महाराओ ति। तस्स य धम्मगणप्पहावेण अणरत्तसामंतमंडलं रहियं कंटएहि अलंकियं रज्जगुणेण समद्धासिवं लच्छीए निच्चपमुइयजणं सुट्टियाए तिवग्गणीईए सयलजणपससणिज्जं देवगुरुपज्जुवासणपरयाए रज्जमणुपालेंतस्स अइक्कंतो कोइ कालो। ___ अन्नया समागो जलयकालो, ओत्थरियमंबरं जलहरेहि, पवाइया कलंबवाया, वियभिओ गज्जियरवो, उल्लसिया वलायपंती, विप्फुरिया विज्जुलेहा, हरिसिया वप्पीहया, जायं परिसणं, पणच्चिया सिहंडिणो, पणट्ठा रायहंसा, पव्वालिया वसुमई, भरिया कुसारा, पवत्तो ददुररवो, उब्भिन्ना कंदला, उक्कंठियाओ पहियजायाओ, निव्वयं गोमाहिसक्क । पवड्ढमाणाणुबंधे य जलयकाले सरसरियापूरदंतणत्थं समं अहासन्निहियपरियणेण निग्गओ राया। दिट्ठा सरिया कटुतणकलि त्तरकालं च कथित: परस्परमाभ्यां धर्मवृत्तान्तः । गती गणिनीसमीपम्, श्रुता धर्मदेशना। समागतो उचितसमयेन। एवं च प्रतिदिनं धर्मयोगाराधनपरयोरतिक्रान्तः कोऽपि कालः। भावितौ धर्मे । कालक्रमेणैव समुत्पन्नो रत्नवत्याः पुत्रः । नप्त मुखदर्शन कृतार्थत्वेन च कुमारं राज्येऽभिषिच्य प्रवजितो मैत्रोबलः। कुमारोऽपि जातो महाराज इति । तस्य च धर्मगुणप्रभावेनानुरक्तसामन्तमण्डलं रहितं कण्टकरलंकृतं राज्यगुणेन समध्यासितं लक्ष्म्या नित्यप्रमुदितजनं सुस्थितया त्रिवर्गनीत्या सकलजनप्रशंसनीयं देवगुरुपर्युपासनपरतया राज्यमनुपालयतोऽतिक्रान्तः कोऽपि कालः। ___अन्यदा समागतः जलदकालः, अवस्तृतमम्बरं जलधरैः, प्रवाताः कदम्बवाताः, विज़म्भितो जितरवः, उल्लसिता बलाकापङ क्तिः, विस्फुरिता विद्युल्लेखाः, हर्षिताश्चातकाः, जातं प्रवर्षणम्, प्रनर्तिताः शिखण्डिनः, प्रनष्टा राजहंसा, प्लाविता वसुमती, भृताः कासाराः, प्रवृत्तो दर्दुररवः, उद्भिन्नाः कन्दलाः, उत्कण्ठिताः पथिकजायाः, निर्वतं गोमाहिषचक्रम् । प्रवर्धमानानुबन्धे च जलदकाले सर:सरित्पूरदर्शनार्थ समं यथासन्निहितपरिजनेन निर्गतो राजा । दृष्टा सरित् काष्ठतृणकलि कहा । दोनों गणिनी के पास गये । धर्मोपदेश सुना । योग्य समय पर वापस आये । इस प्रकार प्रतिदिन धर्मयोग की आराधना-परायण होते हुए दोनों का कुछ समय बीत गया। दोनों ने धर्म भाव रखा । कालक्रम से रत्नवती के पुत्र उत्पन्न हुआ। पौत्र के मुख-दर्शन से कृतार्थ होकर कुमार का राज्य पर अभिषेक कर मंत्रीबल प्रवजित हो गया। कुमार भी महाराज हो गये। धर्मगुण के प्रभाव से अनुरक्त समस्त सामन्त समूहवाले, कण्टकों से रहित, राज्यगुण से अलंकृत, लक्ष्मी से अधिष्ठित, प्रतिदिन लोगों को प्रमुदित करते हुए, धर्म, अर्थ और काम की सुस्थिर नीति से लोगों द्वारा प्रशंसनीय, देव और गुरु के उपासना-परायण होकर राज्य का पालन करते हुए (उनका) कुछ समय बीत गया । ___ एक बार वर्षाकाल आया। मेघों ने आकाश को आच्छादित कर लिया। हवा के झोंके चले । गर्जन का शब्द बढ़ा। बगुलों की पंक्तियाँ हर्षित हुईं। बिजली चमकने लगी। पपीहे हर्षित हुए। खूब वर्षा हुई। मोरों ने नृत्य किया। राजहंस दिखाई नहीं पड़े। पृथ्वी जल से भर गयी, तलैयाँ भर गयीं, मेंढकों का शब्द होने लगा । अंकुर फूट पड़े । पथिकों की स्त्रियाँ उत्कण्ठित हो गयीं । गाय और भैसों का समूह शान्त हुआ। वर्षा बढ़ने पर तालाब और नदियों की बाढ़ देखने के लिए समीपवर्ती परिजनों के साथ राजा निकला। लकड़ी, तण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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