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________________ अट्ठमो भवो ] fafrror महत्थाई ठियाइ एक्कारसं पि अंगाई । कमल कोमल वि जीए जोहाए अग्गमि ॥१५॥ सा वंदिया य नवरं गणिणी तुम्भेहि विम्हियमहं । करयलकयंजलिउड हरिसवसुभिन्नपुल एहिं ॥ १६॥ तीए वि धवलपडंतर विणिग्गउत्ताणिएक्ककरकमलं । अधुन्नामियवयणाए भणियं धम्मलाहो ति ॥ १७॥ भणियाणि य जिणयंदे बंदह काऊण कुसुमट्ठति । पुरओ जिणाण जेणं मुच्चह संसारवासाओ ॥ १८॥ काऊ कुसुमवुद्ध गंध कुट्टिमम्मि जिणयंदे | अह वंदिऊण य तओ गणिणीसमोवे निसण्णाई ॥१६॥ गणिणीए तओ भणियं निम्मलपरिणितदसण किरणोहं । परिवसह कत्थ तुम्भे इहेव इय जंप्रमाणेह ॥ २०॥ Jain Education International विस्तीर्ण महार्थानि स्थितानि एकादशापि अङ्गानि । कमलदलकमलेsपि यस्या जिह्वाया अग्रे ॥१५॥ सा वन्दिता च नवरं गणिनी युवाभ्यां विस्मितमनोभ्याम् । करतलकृताञ्जलिपुटं हर्षवशोद्भिन्नपुल काम्याम् ॥ ६१६ ॥ तयाऽपि धलपटान्तरविनिर्गतोत्तानितै ककरकमलम् । अर्धोन्नामितवदनया भणितं धर्मलाभ इति ॥ ६१७॥ भणितौ च जिनचन्द्रान् वन्देथां कृत्वा कुसुमवृष्टिमिति । पुरतो जिनानां येन मुच्येयाथां संसारवासाद् ॥ ११८ ॥ कृत्वा कुसुमवृष्टि गन्धाढ्यां कुट्टिमे जिनचन्द्रान् । अथ वन्दित्वा च ततो गणिनीसमीपे निषण्णौ ॥ १६ ॥ गणिया ततो भणितं निमलपरिंगच्छद्दशन किरणौघम् । परिवसथः कुत्र युवामिहैवेति जल्पतोः ॥ २० ॥ जिनके जीभ के अग्रभाग में विस्तृत महात् अर्थवाले ग्यारह अंग विराजमान थे। विस्मित-मन तुम दोनों ने हर्षवश रोमांचित हो हथेलियों की अंजलि बाँधकर गणिनी की वन्दना की। उन्होंने भी श्वेत वस्त्र से बाहर निकाले गये एक हस्तकमल को ऊपर उठाकर और मुँह को आधा ऊँचा कर धर्मलाभ दिया और तुम दोनों से कहा कि फूलों की वर्षा कर सामने स्थित जिनचन्द्र (और) जिनों की वन्दना करो जिससे संसारवास से मुक्त हो जाओ। इसके बाद गन्ध से व्याप्त फूलों की वर्षा कर जिनचन्द्रों की वन्दना कर तुम दोनों फर्श पर गणिनी के पास बैठ गये । तदनन्तर जिनके दाँतों से निर्मल किरणें निकल रही थीं ऐसी गणिनी ने कहा- 'आप दोनों कहाँ ७४३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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