________________
७३४
[समराइच्चकहा
तेहि वि य तुज्झ धम्मो कहिओ जिणदेसिओ सुसाहूहि । पडिवन्ना इय तुब्भे कम्मोवसमेण तं धम्मं ॥८६१॥ दिन्नो य नमोक्कारो सासयसिवसोक्खकारणभूओ। भत्तिभरोणयवयणेहि सो य तुम्भेहि गहिओ ति॥८६२॥ मणिऊण तह य तुब्भं जम्मं कम्माणुहावचरियं च । साहूहि समाइटें कायवमिणं ति तुहिं ।। ८६३॥ पक्खस्सेगदिणम्मी आरंभं वज्जिऊण सावज्ज । पइरिक्कसंठिएहि अणुसरियव्वो नमोक्कारो॥८६४॥ तम्मि य दिणम्मि तुन्भं जइ वि सरीरविणिवायणं कोइ। चितेज्ज तह करेज्ज व तहावि तुब्भेहि खमियव्वं ॥८६५॥ एवं सेवंताणं तम्भं जिणभासियं इमं धम्म । अचिरेण होहिइ धुवं मणहरसुरसोक्खसंपत्ती॥६६॥
तैरपि च तव धर्मः कथितो जिनदेशितः सुसाधुभिः । प्रतिमन्नाविति युवां कर्मोपशमेन तं धर्मम् ।।८६१।। दत्तश्च नमस्कारः शाश्वत शिवसौख्यकारणभूतः। भक्तिभरावनतवदनाभ्यां स च युवाभ्यां गृहीत इति ।।८६२॥ ज्ञात्वा तथा च युवयोर्जन्म कर्मानुभावचरितं च।। साधुभिः समादिष्टं कर्तव्यमिदमिति युवाभ्याम् ।। ८६३।। पक्षस्यैकदिने आरम्भं वर्जयित्वा सावद्यम्। प्रतिरिक्तसंस्थिताभ्यामनुस्मर्तव्यो नमस्कारः ॥८६४।। तस्मिश्च दिने युवयोर्यद्यपि शरीरविनिपातनं कोऽपि । चिन्तयेत् तथा कुर्याद्वा तथापि युष्माभ्यां क्षन्तव्यम् ॥८६५।। एवं सेवमानयोर्यवयोजिनभाषितमिमं धर्मम् । अचिरेण भविष्यति ध्रुवं मनोहरसुरसौख्यसम्पत्तिः ।।८६६।।
पहुंचा दिया। उन अच्छे साधुओं ने भी तुम्हें जिनदेशित धर्म कहा। तुम दोनों ने कर्मों के उपशम से उस धर्म को प्राप्त किया । शाश्वत मोक्षरूपी सुख के कारणभूत नमस्कार को कर भक्ति के आधिक्य से अवनत मुखवाले तुम दोनों ने वह धर्म ग्रहण किया । तुम दोनों के जन्म, कर्म, प्रभाव और चरित जानकर साधुओं ने तुम दोनों को कर्तव्य का उपदेश दिया-'पक्ष (पन्द्रह दिन) के एक दिन सावध आरम्भ का त्यागकर एकान्त स्थान में बैठकर नमस्कार मंत्र का स्मरण करना । उस दिन तुम दोनों के शरीर का कोई घात सोचे या कर दे तो भी तुम दोनों उसे क्षमा कर देना। इस प्रकार जिनेन्द्र कथित धर्म का सेवन करने पर तुम दोनों को शीघ्र ही मनोहर देवसुखों की प्राप्ति निश्चित रूप से होगी।' तुम दोनों ने भी भक्तिपूर्वक उत्तम साधुओं के वचन सुनकर 'ऐसा ही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org