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________________ अठमो भवो ] काऊण नमोक्कारं तित्थस्स पयाहिणं च उवविट्ठो । पुव्वाभिमुह तहियं पडिपुण्णो सारयससि व्व ॥ ७५६॥ सेसेसु वितिसु पासेसु भयवओ तत्थ तिष्णि पडिमाओ । देवेहि निम्मियाओ जिर्णाबिबसमाउ दिव्वाओ ॥७६० ॥ इंदा य विमलचामरमणहर परिभूसिएकक करकमला । उभओ पासेसु ठिया जिणाण वेउव्वियसरीरा ॥७६१॥ सोहासम्म विमले दाहिणपुव्वेण नाइदूरम्मि । तित्थयरस्स निसण्णो मुणिनमिओ गणहरो जेट्टो ॥७६२ ॥ पुन्यद्दारेण पविसिय मुणिणो तह कप्पवासिदेवीओ ! अज्जाउ ट्ठति तहिं नमिउं अग्गेयदिसिभाए ॥ ७६३॥ दाहिणदारेणं पविसिऊणमह दाहिणावरविभाए । भवणवण जोइसाणं देवीउ ठियाउ अइनिहुयं ॥७६४॥ Jain Education International कृत्वा नमस्कारं तीर्थस्य प्रदक्षिणां चोपविष्टः । पूर्वाभिमुखस्तत्र प्रतिपूर्णः शारदशशीव ॥ ७५६ ॥ शेषेष्विव त्रिषु पार्श्वेषु भगवतस्तत्र तिस्रः प्रतिमाः । देवैर्निर्मिता जिनबिम्बसमा दिव्याः ॥७६०॥ इन्द्री च विमलचामरमनोहरपरिभूषितैक कर कमली । उभयोः पार्श्वयोः स्थितौ जिनानां विकुर्वितशरीरौ ॥७६१ ॥ सिंहासने विमले दक्षिणपूर्वेण नातिदूरे । तीर्थकरस्य निषण्णो मुनिनतो गणधरो ज्येष्ठः ।।७६२ ।। पूर्वद्वारेण प्रविश्य मुनयस्तथा कल्पवासिदेव्यः । आर्यास्तिष्ठन्ति तत्र नत्वा आग्नेयदिग्भागे ॥७६३॥ दक्षिणद्वारेण प्रविश्याथ दक्षिणापरविभागे । भवनवनज्योतिष्कानां देव्यः स्थिता अतिनिभृतम् ।।७६४॥ पूर्वद्वार से जिनेन्द्र भगवान् प्रविष्ट हुए । नमस्कार कर और तीर्थ की प्रदक्षिणा कर शरत्कालीन पूर्ण चन्द्रमा के समान पूर्वाभिमुख होकर बैठ गये । भगवान् के शेष तीनों बाजुओं में (तीनों ओर) देवों ने जिनबिम्ब के समान दिन्य तीन प्रतिमाएँ निमित्त कीं। दोनों इन्द्र एक एक हस्तकमल में स्वच्छ चँवरों से मनोहर शोभावाले होकर जिनेन्द्र भगवान् के दोनों ओर शरीर की विक्रिया कर खड़े हो गये । तीर्थंकर के समीप ही दक्षिण-पूर्व दिशा में स्वच्छ सिंहासन पर मुनियों के द्वारा नत ज्येष्ठ गणधर बैठ गये । पूर्व के द्वार से मुनि तथा कल्पवासी देवियाँ प्रविष्ट हुईं। वहाँ पर आग्नेय दिशा में नम्रीभूत आर्याएँ बैठी थीं। दक्षिण द्वार से प्रविष्ट होकर दक्षिण-पश्चिम भाग में भवनवासी और ज्योतिषी देवों की देवियाँ अत्यन्त शान्त बैठी थीं । पश्चिम द्वार से प्रविष्ट होकर पश्चिमोत्तर ७१७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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