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[समराइकहा
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चलिओ चलंतचामरगमणंदोलंतकुंडलसणाहो। ऊसियसियायवत्तो रायगइंदं समारूढो ॥५६२॥ सियवरवसणनिवसणो सियमुत्ताहारभूसियसरीरो। सियकुसुमसेहरो सियसुर्यधहरियंदणविलित्तो ॥५६३॥ सामंतेहि समेओ दोघट्टतुरंगरहवरसएहि। नीसरिओ नयराओ इंदो व्व सुरोहपरिवारो॥५६४॥ तूररववहिरियदिसं बंदिसमुग्घटुविविहजयसई। अहिवंदिऊण पुरओ कंचणकलसं सलिलपुण्णं ॥५६५॥ सोऊण पडहसई विलयायणहिययदूसहं तुरियं । आयण्णिउ च वयणं एस कुमारो पयट्टो त्ति ॥५६६॥ तो भरिया निवमग्गा निरंतरूसियसियायवत्तेहि। खयकालखुहियखोरोयसलिलनिवहेहि व बलेहि ॥५६७॥
चलितश्चलच्चामरगमनान्दोलयत्कुण्डलसनाथः । उच्छितसितातपत्रो राजगजेन्द्रं समारूढः ।।५६२।। सितबरवसननिवसनः सितमुक्ताहारविभूषितशरीरः । सितकुसुमशेखरः सितसुगन्धहरिचन्दनविलिप्तः ।। ५६३।। सामन्तैः समेतो दोघट्ट (हस्ति) तुरङ्गरथवरशतैः । निःसतो नगराद् इन्द्र इव सुरौघपरिवारः ।।५९४॥ तूर्य रववधिरितदिशं बन्दिस पद्घष्टविविधजयशब्दम । अभिवन्द्य पुरतः काञ्चनकलशं सलिलपूर्णम् ॥५६५॥ श्रुत्वा पटहशब्दं वनित जनहृदयदुःसहं त्वरितम् ।। आकर्ण्य च वचनं एष कुमारः प्रवृत्त इति ॥५६६॥ ततो भृता नृपमा निरन्तरोछितसितातपत्रैः । क्षयकालक्षब्धक्षीरोदस लिल निव हैरिव बलैः ।।५६७॥
गमन करते समय वह हिलते हुए कुण्डलों से युक्त था, उसका चंचल चंवर चलायमान हो रहा था। उसके ऊपर सफेद छत्र लगा हुआ था, वह राजकीय हाथी पर सवार था। अत्यधिक सफद वस्त्र पहिने था। सफेद मोतियों के हार से उसका शरीर विभूषित था। सिर पर सफेद सेहरा था। सफेद सुगन्धित हरिचन्दन का उसके ऊपर लेप किया गया था। संकड़ों हाथी, घोड़े, रथ तथा सामन्तों से युक्त वह देवताओं से घिरे हुए इन्द्र के समान नगर से निकला। उस समय बाजों के शब्द से दिशाएँ बधिर हो रही थीं, बन्दिजन नाना प्रकार से जय-शब्द उच्चार रहे थे । नारी हृदय के लिए दुःसह नगाड़े के शब्द को सुनकर स्त्रियाँ सामने जल से पूर्ण स्वर्णमयी कमशों से अभिनन्दन कर रही थीं। 'यह कुमार चल पड़ा'---यह वचन सुनाई दे रहा था। प्रलयकाल में क्षुध क्षीरसागर के जलसमूह के समान सेनाओं के निरन्तर उठे हुए सफेद छत्रों से राजपथ भरे हुए थे ॥५६२-५६७।।
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