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[ समराइच्चकहा
सिया ताव मए तुह जायागवेसण निमित्तं निययपुरिसा । तत्थ उण केइ आगया अवरे न वत्ति ।
एत्थंतरम्मि विइयकुमारवत्तंतेणेव भणियं सोमसूरेण देव, सुमरियं मए कुमारस्स पिययमासंजोयकारणं ति । राइणा भणियं -- कहेउ अज्जो, कीइसं । सोमसूरेण भणियं - देव, अत्थि कायंबरी अडवीए पियमेलयं नाम तित्थं । तस्स किल एसा उद्वाणपा रावणिया । sire व कायम्बरीए विसाहवद्धणं नाम नयरं अहेसि । अजियबलो राया, वसुंधरो सेट्ठी, पियमित्तो से सुओ। लद्धा य णेण तन्नयरवत्थव्वयस्स ईसरखंदस्स धूया नीलुया' नाम कम्नया । अइक्तो कोइ कालो । अवत्ते विवाहे पत्ताणि जोव्वणं । एत्थंतरम्मि विचित्तयाए कम्मपरिणामस्स, 'चंचला सिरि' ति सच्चयाए लोयपवायस्स' वसुंधरसे द्विणो विद्यलिओ विहवो । 'वुड्ढो चेव अहयं; ता अलं मे परमत्थ संपायणरहिएणं जीविएणं' ति चितिऊण य अहिमाणेवकरसियाए परिचत्तमण जीवियं । पियमित्तो वि य 'अमाणणीया दरिद्द' त्ति परिभूओ परियणेणं 'करेंतस्स वि य अणुट्ठाणं विहलं संपज्जइ' त्ति गहिओ विसाएणं । तओ 'किमिह अत्तणा विडंबिएणं' ति असाहिऊण
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करोमि । प्रेषितास्तावन्मया तव जायागवेषणनिमित्तं निजपुरुषाः । तत्र पुनः केऽप्यागता अपरे नवेति । अत्रान्तरे विदितकुमारवृत्तान्तेनैव भणितं सोमसूरेण - देव ! स्मृतं मया कुमारस्य प्रियतमासंयोगकारणमिति । राज्ञा भणितम् - कथयत्वार्यः कीदृशम् ? सोमसूरेण भणितम् - देव ! अस्ति कादम्बर्यामटव्यां प्रियमेलकं नाम तीर्थम् । तस्य किलैषा उत्थानपर्यापनिका । अस्यामेव कादम्बर्यां विशाखवर्धनं नाम नगरमासीद् । अजितबलो राजा, वसुन्धरः श्रेष्ठी, प्रिय मित्रस्तस्य सुतः । लब्धा च तेन तन्नगरवास्तव्यस्येश्वरस्कन्दस्य दुहिता नीलुका नाम कन्यका । अतिक्रान्तः कोऽपि कालः । अवृत्ते विवाहे प्राप्तौ यौवनम् । अत्रान्तरे विचित्रतया कर्मपरिणामस्य ' चञ्चला श्रीः' इति सत्यतया लोकप्रवादस्य वसुन्धरश्रेष्ठिनो विचलितो विभवः । 'वृद्ध एवाहम्, ततोऽलं मे परमार्थ सम्पादन रहितेन जीवितेन' इति चिन्तयित्वा च अभिमानैकरसिकतया परित्यक्तमनेन जीवितम् । प्रियमित्रोऽपि च 'अमाननीया दरिद्रा:' इति परिभूतः परिजनेन 'कुर्वतोऽपि चानुष्ठानं विफलं सम्पद्यते ' गृहीतो
प्रिय करूँ ? तुम्हारी पत्नी को ढूंढ़ने के लिए मैंने अपने आदमी भेजे थे । उनमें कुछ लोग आ गये हैं, कुछ लोग नहीं ।'
इसी बीच मानो वृत्तान्त विदित हो इस प्रकार सोमसूर ने कहा - 'महाराज ! मुझे कुमार की प्रियतमा के संयोग का कारण स्मरण है।' राजा ने कहा- 'कहो आर्य, कैसा ( स्मरण ) ?' सोमसूर ने कहा - 'महाराज ! कादम्बरी नामक वन में प्रियमेलक नाम का तीर्थ है। उसकी यह भूमिका और उपसंहार है । इसी कादम्बरी में विशाखवर्धन नाम का नगर था । ( वहाँ का ) राजा अजितबल (और) सेठ वसुन्धर था । उस सेठ का प्रियमित्र ( नाम का ) पुत्र था। उसने उसी नगर के वासी ईश्वरस्कन्द की पुत्री नीलुका नामक कन्या प्राप्त की। कुछ समय बीता। दोनों ने यौवनावस्था प्राप्त की, विवाह नहीं हुआ । इसी बीच कर्मपरिणाम की विचित्रता से, 'लक्ष्मी चंचल होती है' ऐसे लोकापवाद की सत्यता से वसुन्धर सेठ का वैभव चला गया। मैं वृद्ध ही हूँ, अत: दूसरे के प्रयोजन को पूरा किये बिना मेरा जीना व्यर्थ है - ऐसा सोचकर अभिमान मात्र का ही रसिक होने के कारण इसने प्राण त्याग दिये । प्रियमित्र भी 'दरिद्र लोग माननीय नहीं होते हैं'- - इस तरह परिजनों से तिरस्कृत होकर 'कार्य करते हुए भी विफलता मिलती है' - ( इस कारण ) विषाद से जकड़ लिया गया । अनन्तर अपने उपहास से क्या ?
१. नीलया - क । २. लोयवायरस क ।
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