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समभवो ]
माइभवभासदो सेण वियंभिओ कुमारस्स पेम्मसायरो । चितियं च णेण । अहो से रूवसोम्मया, संसार व ईसा भाव त्ति । 'कराविओ कोउयाई । पूइया देवगुरवो । निवत्तो हत्थग्गहो । सम्माणिया सामंता, अहिदिया नायरया, परिओसिओ तक्कुयजणो सि । भमियाइं मंडलाई । वत्तो विवाहजानो। अमरकुमरोवनं च सोक्खमणुहवंतस्स अइक्कता कवि दियहा । समुप्पन्नो पणओ । तओ 'कज्जपहाणा राइणो' त्ति सम्माणिओ नरिंदेण, पूइओ सामंतेहि, अहिणंदिओ नयरिजणवरणं, घेत्तूण संतिमई महया चडयरेण समागओ नियनयर । आनंदिओ राया, हरिसियाई अंतेउराई, तुट्ठो नयरिजणवओ, दूमिओ विसेणो, कया अयालमहिमा, पविट्ठो महाविभूईए । पणमिओ राया, अहिनंदिओ णेण, गओ निययावासं । तत्थ वि य अइक्कंतो कोइ कालो विसयसुमहत ।
अन्नयाय समागओ वसंतसमओ । सो उण उद्दामकामिणीयण वियं भियमयण पसरो महुरपरयास वित्तासिय हिययणनिवहो पिययमामाण कलिकेउ भूयवियंभियमलयाणिलो कुसुममहुमत्त
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भ्यासदोषेण विजृम्भितः कुमारस्य प्रेमसागरः । चिन्तितं च तेन - अहा तस्य रूपसौम्यता, संसारेऽ-: पीदृशा भावा इति । कारितः कौतुकानि । पूजिता देवगुरवः । निर्वृत्तो हस्तग्रहः | सन्मानिताः सामन्ताः, अभिनन्दिता नागरकाः, परितोषितः 'स्वजनजन इति । भ्रान्तानि मण्डलानि । वृत्तो विवाहयज्ञः । अमरकुमारोपमं च सौख्यमनुभवतोऽतिक्रान्ताः कत्यपि दिवसाः । समुत्पन्नः प्रणयः । ततः ' कार्यप्रधाना राजानः' इति सन्मानितो नरेन्द्रेण पूजितः सामन्तः, अभिनन्दितो नगरीजनव्रजेन । गृहीत्वा शान्तिमतीं महताऽऽडम्बरेण समागतो निजनगरीम् । आनन्दितो राजा, हृषितान्यन्तः पुराणि तुष्टो नगरीजनव्रजः, दूनो विषेणः कृताऽकालमहिमा, प्रविष्टो महाविभूत्या । प्रणतो राजा, अभिनन्दितस्तेन, गतो निजावासम् । तत्रापि च गतः कोऽपि कालो विषयसुखमनुभवतः ।
अन्यदा च समागतो वसन्तसमयः । स पुनरुद्दामकामिनीजनविजृम्भितमदनप्रसरो मधुरपरभृताशब्दवित्रासितपथिकजननिवहः प्रियतमामानकलिकेतुभूतविजृम्भितमलयानिलः कुसुममधमत्तथा, महीन दैवीय वस्त्र उसके ऊपर फैलाया गया था। उसे देखकर अनादि भव के अभ्यास के दोष से कुमार का प्रेमरूपी सागर बढ़ गया। उसने सोचा- अहा, इरा राजकन्या की रूपसौम्यता, संसार में भी ऐसी वस्तुएं हैं ? कौतुक कराये गये । देव और गुरुओं की पूजा की। पाणिग्रहण संस्कार पूरा हुआ । सामन्तों का सम्मान किया गया, नागरिकों का अभिनन्दन किया गया, स्वजन सन्तुष्ट हुए । फेरे हुए। विवाह-यज्ञ सम्पन्न हुआ । देवकुमारों के समान सुख का अनुभव करते हुए कुछ दिन बीत गये । प्रणय उत्पन्न हुआ । अनन्तर राजा लोग कार्यप्रधान होते हैं - ऐसा सोचकर राजा ने सम्मान किया, सामन्तों ने पूजा की, नगर के जन-समूह ने अभिनन्दन किया । शान्तिमती को लेकर कुमार ठाठ-बाट के साथ अपनी नगरी में आया । राजा आनन्दित हुआ, अन्तःपुर हर्षित हुआ, नगरी के लोग सन्तुष्ट हुए । विषेण दुःखी हुआ, असामयिक महोत्सव किया गया, बड़ी विभूति के साथ कुमार प्रविष्ट हुआ । ( उसने) राजा को प्रणाम किया। राजा ने अभिनन्दन किया । ( वह) अपने निवास पर गया । वहाँ पर भी विषयसुख का अनुभव करते हुए कुछ समय बीत गया ।
एक बार वसन्त समय आया । उसमें उत्कट कामिनियों के द्वारा काम का विस्तार बढ़ा दिया गया । कोयल की मधुर आवाज ने पथिकों के समूह को दुःखी कर दिया, प्रियतमाओं के मान से उत्पन्न कलह के लिए
१. कारावियो क । २: सक्कुय (वे०) स्वजद !
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