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________________ [समराइचकहा पवज्जह अहिए गणट्ठाणे त्ति । ___एत्थंतरम्मि य समागओ रायपडिहारो। भणियं च णेणं-भो भो अमच्च, महाराओ आणवेइ 'सिग्घमागंतव्वं' ति । तेण भणियं -जं देवो आणवेइ ति। वच्च तुम, एस आगच्छामि। पुच्छिओ नेभित्तिओ --अज्ज, किं पुग आह व मितं । मेरित्तिएण भणियं--संखेवो ताव एयं । समागओ रायपुरसामिणो सयासाओ एत्थ रायपुरिसो, आणंदहेऊ य सो नरवइस्स । ता तन्निमित्तमाहवणं ति। मंतिणा भणियं-अज्ज, कहं आणंदहेउ ति। नेमित्तिएण भणियं-जइ एवं, ता पढसु किंचि ति। मंतिणा भणियं-जयति' जयलच्छिनिलओ) अवगयं नेमित्तियस्स । भणियं च णेण। सोम, समागओ ख एसो कुमाराण कन्नयापयाणनिमितं; महापुरिससंबंधेण य महंतो आणंदो त्ति । अन्नं च । ईइसं एत्थ लग्गं जओ एवं पि मुणिज्जइ 'जो चैव कुमाराण एवं कन्नयं परिणइस्सइ, सो चेव एवं विवन्नं पि राजधुरमुव्वहिस्सइ'त्ति। आणंदिओ मंती। पूइओ नेमित्तिओ। तओ आइसिय संतिकम्मं गओ रायउलममच्चो । दिट्ठो णेण राया दूओ य । अब्भुटिओ राइणा, पणामियं आसणं, उवविट्ठो अमच्चो। यथायुष्कमेव किञ्चित् सावद्यम् , प्रपद्यध्वमधिकानि गुणस्थानानीति । ___अत्रान्तरे च समागतो राजप्रतीहारः । भणितं च तेन-भो भो अमात्य ! महाराज आज्ञापयति 'शीघ्रमागन्तव्यम्' इति । तेन भणितम् यद्देव आज्ञापयति इति। व्रज त्वम्, एष आगच्छामि । पृष्टो नैमित्तिकः --आर्य ! किं पुनराह्वाननिमित्तम् । नैमित्तिकेन भणितम्-संक्षेपतप्तावदेतद । समागतो राजपुरस्वामिनः सकाशादत्र राजपुरुषः, आनन्दहेतुश्च स नरपतेः। ततस्तन्निमित्तमाह्वानमिति । मन्त्रिणा भणितम्--आर्य ! कथमानन्दहेतुरिति । नैमित्तिकेन भणितम्- यद्येवं ततः पठ किञ्चिदिति। मन्त्रिणा भणितम् - जयति जयलक्ष्मीनिलयः। अवगतं नैमित्तिकस्य । भणितं च तेन-सौम्य ! समागतः खल्वेष कुमारयोः कन्याप्रदाननिमित्तम्, महापुरुषसम्बन्धेन च महानानन्द इति। अन्यच्च ईदृशमत्र लग्नम्, यत एतदपि ज्ञायते 'य एव कुमारयोरेतां कन्यकां परिणेष्यति स एवैतां विपन्नामपि राजधुरमुद्वक्ष्यति' इति । आनन्दितो मन्त्री। पूजितो नैमित्तिकः । तत आदिश्य श तिकर्म गतो राजकुलममात्यः । दृष्टस्तेन राजा दूतश्च । अभ्युत्थितो राज्ञा, अर्पित को प्राप्त करो।' इसी बीच राजा का द्वारपाल आया। उसने कहा-- 'हे हे मन्त्री ! महाराज आज्ञा देते हैं, शीघ्र आओ।' मन्त्री ने कहा - 'जो महाराज की चलो। तुम चलो, मैं आता हूँ।' (मन्त्री ने) नैमित्तिक से पूछा-'आर्य ! बुलाने का क्या कारण है ?' नैमित्तिक ने कहा--'संक्षेप में बात यह है । राजपुर के स्वामी के पास से यहाँ एक राजपुरुष आया है, वह महाराज के आनन्द का कारण है । अत: उसके लिए महाराज ने बुलाया है।' मन्त्री ने कहा---'आर्य, (वह पुरुष) महाराज के आनन्द का कारण कैसे है ?' नैमित्तिक ने कहा-'यदि ऐसा है तो कुछ पढ़ो।' मन्त्री ने कहा ---'विजयलक्ष्मी के निवास की जय हो।' नैमित्तिक ने जान लिया और उसने कहा--सौम्य ! यह दोनों कूमारों को कन्या प्रदान करने के लिए आया है। महापुरुष के सम्बन्ध के कारण महान् आनन्द है। दूसरी बात यह है-यहाँ पर ऐसी लग्न है, जिससे यह भी ज्ञात होता है कि दोनों कुमारों में से जो इस कन्या को विवाहेगा वह इसके मरने पर भी राज्य की धुरी को धारण करेगा।' मन्त्री आनन्दित हुआ । (उसने) नैमित्तिक की पूजा की। अनन्तर शान्तिकर्म का आदेश देकर मन्त्री राजदरबार में गया। उसने राजा और दूत को देखा । राजा ने अगवानी की, १. जयइ-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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