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चुके हैं जो विलुप्तप्राय हो चले थे, अनुपलब्ध हो गये थे या तब तक अप्रकाशित । इनका अनुसन्धान तो हुआ ही है, इनका वैज्ञानिक दृष्टि से आधुनिक शैली में सम्पादन हुआ; हिन्दी; अंग्रेजी में अनुवाद, समीक्षा आदि भी करायी गयी । यहो कारण है कि सामान्य पाठकों के साथ विद्वज्जगत् ने भी इन प्रकाशनों का मुक्त हृदय से स्वागत किया है ।
इस पुनीत कार्य में आशातीत धनराशि अपेक्षित होने पर भो भारतीय ज्ञानपीठ के पथप्रदर्शक सदा ही तत्पर रहते हैं । उनको तत्परता को कार्य रूप में परिणत करते हैं हमारे सभी सहकर्मी । इन सबके हम कृतज्ञ हैं । प्रस्तुत रचना का महत्त्व साहित्य - रसिकों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। इसे विश्वविद्यालयों के समालोचक आचार्यों और ज्ञानपिपासु छात्रों को सहज सुलभ होना चाहिए ।
ऋषभ जयन्ती १६ मार्च, १९६३
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गोकुल प्रसाद जैन उपनिदेशक
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