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________________ प्रकाशकीय 'समराइच्चकहा' आचार्य हरिभद्र सूरि (आठवीं शती) की एक ऐसी आख्यानात्मक कृति है, प्राकृत गद्य भाषा में निबद्ध होने पर भी जिसकी तुलना संस्कृत में महाकवि बाणभट्ट की 'कादम्बरी' तथा जैन काव्य 'यस्तिलकचम्पू' और 'वसुदेवहिण्डी' से की जाती है। प्रचलित भाषा में हम इसे नायक और प्रतिनायक के बीच जन्म-जन्मान्तरों के संघर्ष की कथा का वर्णन करने वाला प्राकृत का एक महान् उपन्यास कह सकते हैं। आज से पचास वर्ष पूर्व यह ग्रन्थ अहमदाबाद से पं० भगवानदास कृत संस्कृत छायानुवाद के साथ प्रकाशित हुआ था। इसी ग्रन्थ को आधार मानकर पहली बार इस ग्रन्थ का सुन्दर एवं प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद प्राकृत एवं संस्कृत के विद्वान् डॉ. रमेशचन्द्र जैन ने किया है। इस प्रकार प्राकृत मूल, संस्कृत छाया और हिन्दी अनुवाद के साथ इसका प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ की एक और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । प्राकृत काव्य-रचना एवं दर्शन-चिन्तन-परक ग्रन्थ-लेखन की परम्परा में आचार्य हरिभद्र सूरि का स्थान सर्वोपरि है । वे काव्यकार तो थे ही, दार्शनिक, आचार-शास्त्री, योगद्रष्टा, योतिषाचार्य भी थे, और इन सबसे आगे थे वे अतिविशिष्ट टीकाकार । उनका मौलिक चिन्तन उनके मौलिक ग्रन्थों में निहित तो है ही, टीका-ग्रन्थों में भी अनुस्यूत है। 'समराइच्चकहा' में उज्जयिनी के राजा समरादित्य और प्रतिनायक अग्निशर्मा के नौ जन्मों (भवों) का वर्णन है। एक-एक जन्म की कथा एक-एक परिच्छेद में समाप्त होने से इसमें नौ भव यो परिच्छेद हैं । ग्रन्थ के वहद् आकार में होने से इसके पाँच भव 'पूर्वाध' के रूप में और अन्तिम चार भव 'उत्तरार्ध' के रूप में, इस तरह पूरा ग्रन्थ दो जिल्दों में प्रकाशनार्थ नियोजित है। वस्तुतः एक पौराणिक कथानक पर आधारित होकर भी 'समराइच्चकहा' इतिहास और संस्कृति के अनेक चित्र प्रस्तुत करती है। देश-काल और भाव-भंगिमा के चित्रण में यह चना अद्वितीय कही जा सकती है। जैन समष्टि के अनेक पक्ष इस रचना में अपनी यथार्थता साथ उभरे हैं। हिन्दी में इसके अनुवाद की महती आवश्यकता थी। इस दुस्साध्य एवं महत्त्वपूर्ण कार्य लिए हम डॉ. रमेशचन्द्र जैन के आभारी हैं। ज्ञानपीठ की मूर्तिदेवी ग्रन्थमाला के अन्तर्गत संस्कृति, साहित्य, कला, इतिहास आदि के साथ धर्म, दर्शन और न्याय के विविध पक्षों पर १५० से भी अधिक ऐसे ग्रन्थ प्रकाशित हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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