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________________ २६२ सव्वं च तयं दव्वं चिट्ठइ एत्थेव नवर थाणम्मि' | आरामसुन्नदेउल गिरिनदितीरेसु धरणिगयं ॥ ३५८ ॥ घेत्तूणय तं तुम्भे अप्पेह जणस्स जस्स जं तणयं । सिद्धं मए सचिन्हं पच्छा मारेज्जह ममं ति ॥ ३५६॥ सिद्धं च तओ सव्वं सपच्चयं जं जओ जया गहियं । चिट्ठइ य जत्थ देउल गिरिनदितीराइसु तहेव ॥ ३६०॥ गंतूण तेहि वि तओ सिट्ठममच्चस्स सव्वमेयं तु । जोयावियं च तेण वि पच्चइयनरेहि तं दव्वं ॥ ३६१॥ दिट्ठू च निरवसेस सिट्ठे जं जम्मि जम्मि थाणम्मि । पुन्वगहिएण रहियं रायालंकारदव्वेणं ॥३६२॥ दट्ठूण य तं दव्वं चिता मंतिस्स नवरमुप्पन्ना । पुरुवगहिएहि पत्तं तं वन्वं अन्नहा कहवि ॥ ३६३॥ Jain Education International सर्वं च तद् द्रव्यं तिष्ठति अत्रैव नवरं स्थाने । आरामशून्यदेवकुलगिरिनदीतीरेषु धरणीगतम् ॥ ३५८ ॥ गृहीत्वा च तद् यूयमर्पयत जनस्य यस्य यद् सत्कम् । शिष्टं मया सचिह्न पश्चाद् मारयत मामिति ॥ ३५६ ॥ शिष्टं च ततः सर्वं सप्रत्ययं यद् यतो यदा गृहीतम् । तिष्ठति च यत्र देवकुल गिरिनदोतीरादिषु तथैव ॥ ३६० ॥ गत्वा तैरपि ततः शिष्टममात्यस्य सर्वमेतत्तु । दर्शितं च तेनापि प्रत्ययित नरैस्तत् सर्व्वम् ॥ ३६१ ॥ दृष्टं च निरवशेषं शिष्टं यद् यस्मिन् यस्मिन् स्थाने । पूर्वगृहीतेन रहितं राजालङ्कारद्रव्येण ॥३६२॥ दष्ट्वा च तद् द्रव्यं चिन्ता मन्त्रिणो नवरमुत्पन्ना । पूर्वगृहीतैः प्राप्तं तद् द्रव्यं अन्यथा कथमपि ॥३६३।। वह सब धन यहीं दूसरे स्थान पर रखा है। उद्यान, सूने मन्दिर तथा पर्वतीय नदी के किनारे भूमि गड़ा हुआ है । उसे लेकर आप लोग जिसका जो स्वामी हो उसे सौंप दो। मैंने चिह्न सहित बतला दिया है, बाद में (अब) मुझे मार दें।" उसने सभी जो कुछ जहाँ से ग्रहण किया था, वह विश्वासपूर्वक बतला दिया । वह धन, मन्दिर तथा पर्वतीय नदी के तीर आदि पर उसी प्रकार रखा था । जाकर उन्होंने ( राजपुरुषों ने) मन्त्रीको (आमात्यको) भी सब बतला दिया। उसने भी विश्वस्त पुरुषों द्वारा सभी को दिखलाया । जो जिस स्थान पर बतलाया था उसे सम्पूर्ण रूप से वहीं देखा । वह धन पहले ग्रहण किये गये राजा के अलंकार प धन से रहित था । उसे देखकर मन्त्री को दूसरी चिन्ता उत्पन्न हुई कि पहिले पकड़े गए से प्राप्त धन दूसरा कैसे है ? ।। ३५८-३६३ ।। १. ठापम्मि- । [ समदाइच्चकहा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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