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________________ चमत्वो भवो] २५१ तत्थ वोलाविओ लोहियामुहाभिहाणं पाणवाडयासन्नखंडं। तओ वहगचंडालस्स आदेसं दाऊण गया रायपुरिसा । नीओ थेवं भूमिभायं चंडालेण, पुलइओ पच्छा, चिंतियं च तेणं-अहो इमाए आगितीए कहमकज्जयारो भविस्सइ? अहवा निद्देसयारी अहं, ता किं मम एइणा' । सयं निओयमणुचिट्ठामि । निवेसाविओ जमगंडीए, भणिओ य --अज्ज, सुदिटें जीवलोयं करेहि, एवमवसाणो य ते एस लोओ। अन्नं च-वयंसगा णे सावगा, तस्संसग्गिओ य गंतकरदिट्ठिणो अम्हे । रायसासणं चिमं अवस्सं संपाडेयव्वं । विन्नत्तो य अम्हेहिं नरवई। जहा वावाइज्जमाणस्स 'सुहपरिणामो मरउ' ति मुत्तमेत्तं अम्हेहिं समोहियत्थसंपाडणं कायव्वं ति । कओ य णे पसाओ राइणा। ता आणवेउ अज्जो, किं ते संपाडीयइ? धणेण चितियं- अहो विसिठ्ठया चंडालस्स । अहवा दीणसत्तवच्छलो परोवयारनिरओ अणुयंपारई न एस कम्मचंडालो, किं तु जाइचंडालो। सज्जणो खु एसो । अकाले य मे दंसणं एतेण सह जायं ति। अहवा किं एइणा, गओ मे कालो पुरिसचेटियस्स; न संपज्जइ समीहियं अप्पपुण्णाणं ति दोहं नीससिऊण भणियं सविलिएणं। भद्द, संपाडेहि तत्र प्रापितो लोहितमुखाभिधानं प्राण(चण्डाल)पाटकासन्नषण्डम् (वनम्) ततो वधकचाण्डालायादेशं दत्त्वा गता राजपुरुषाः । नीतः स्तोकां भूमिभागं चण्डालेन, प्रलोकितः पश्चात् । चिन्तितं च तेन-अहो!अनयाऽऽकृत्या कथमकार्यकारी भविष्यति ? अथवा निर्देशकारी अहम् । ततः किं मम एतेन ? स्वं नियोगमनुतिष्ठामि । निवेशितो यमगण्डिकायां, भणितश्च-आर्य ! सुदृष्टं जोवलोकं कूरु । एवमवसानश्च तवैष लोकः । अन्यच्च वयस्या नः श्रावकाः, तत्संसर्गिणश्च नैकान्तकरदष्टयो वयम । राजशासनं चेतमवश्य सम्पादयितव्यम् । विज्ञप्तश्चास्माभिर्नरपतिः। यथा व्यापाद्यमानस्य 'शुभपरिणामो म्रियताम्' इति मुहूर्तमात्रमस्माभिः समीहितार्थसम्पादनं कर्तव्यमिति । कृतश्च नः प्रसादो राज्ञा । तत आज्ञापयत्वार्यः, किं तव सम्पाद्यते ? धनेन चिन्तितम् -अहो! विशिष्टता चण्डालस्य । अथवा दीनसत्त्ववत्सलः परोपकारनिरतोऽनुकम्पारतिर्न एष कर्मचण्डालः, किन्तु जातिचण्डालः, सज्जनः खल्वेषः । अकाले च मे दर्शनमेतेन सहजातमिति । अथवा किमेतेन ? गतो मे कालः पुरुषचेष्टितस्य, 'न सम्पद्यते समीहितमल्पपुण्यानाम्' इति दीर्घ निःश्वस्य भणितं सव्यलीकेन । लाल मुह वाले चाण्डालों के वन के समीप आये। अनन्तर वध करने वाले चाण्डालों को आदेश देकर राजपुरुष चले गये। चाण्डाल थोड़ी दूर ले गया, पश्चात् (उसने) देखा । उसने सोचा-अरे ! इस प्रकार की आकृति वाला अकार्य करने वाला कैसे होगा? अथवा हम लोग राजा की आज्ञा मानने वाले हैं । अतः मुझे इससे क्या? अपने कर्तव्य को पूरा करता हूँ। वध करने के पत्थर पर रखा और कहा-"आर्य ! संसार को अच्छी तरह देख लो। तुम्हारे संसार का इस प्रकार अन्त है। दूसरी बात यह है कि हम लोगों के मित्र श्रावक हैं, उनके संसर्ग से हम लोग अत्यन्त क्रूर दृष्टि वाले नहीं हैं । राजा की यह आज्ञा अवश्य पूरी करते हैं । हम लोगों से राजा ने कहा है कि मरने वाले को शुभ भावों से मरने दो, अतः हम लोग क्षणभर के लिए इष्टकार्य कर लेने देते हैं । राजा हम लोगों पर प्रसन्न हैं, अतः आर्य आज्ञा दें, आपका क्या-क्या कार्य करें ?" धन ने सोचाचाण्डाल की विशेषता आश्चर्यजनक है अथवा दीन प्राणियों के प्रति प्रेम रखने वाला. परोपकार में रत, दया का भाव रखने वाला यह कर्म से चाण्डाल नहीं है, किन्तु जन्म से चाण्डाल है-यह सज्जन है । इससी मेर असमय में भेंट हुई । अथवा इससे क्या? मेरे पुरुषार्थ का समय चला गया, अल्प पुण्य वालों का इष्टकार्य पूरा नहीं होता है, इस प्रकार दीर्घ निश्वास लेकर दुःखपूर्वक कहा-"भद्र ! 1. ममेइण-क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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