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________________ २४ [ समराइच्चकहा वेदना का अनुभव करते हुए स्वयं पलंग पर पड़ गयी । वह समस्त क्रीड़ाओं और प्रसाधन से घृणा करने लगी और प्रेम के कारण निराश्रित हो वहाँ लेट गयी। उसी समय उसी वृद्धा धाय ने अपनी पुत्री मदनलेखा को उसे आराम देने के लिए भेजा और उससे कहा कि राजकुमारी क्रीड़ासुन्दर उद्यान में घूमने के कारण थक गयी है। मदनलेखा ने जाकर निवेदन किया-'स्वामिनी उद्विग्न-सी क्यों मालूम पड़ रही हो?' तब कुसुमावली ने घबराहट से हाथ से बाल बाँधते हुए कहा-'क्या प्रिय सखी से भी न कहने योग्य बात है ? फूलों के चुनने के परिश्रम से मुझे कुछ ज्वरांश हो गया है, उससे उत्पन्न परिताप रूपी अग्नि मुझे जला रही है। आओ कदली-गृह में चलें । वहाँ मेरा बिस्तर बिछाओ, जिससे वहाँ जाने पर मेरी दुःख रूपी अग्नि बुझे ।' दोनों कदलीगृह में गयीं। वहाँ कुसुमावली लेट गयी। उसे कपूरवासित पान का बीड़ा दिया गया और हवा की जाने लगी। मदनलेखा ने कुसुमावली से पूछा-स्वामिनि ! इस तरुण जनों के विलास, उद्धत सागरस्वरूप वसन्त समय में तुमने क्रीड़ासुन्दर उद्यान में जाते समय अथवा जाकर क्या आश्चर्य देखा? तब काम की अवस्था में कुसुमावली ने कहा-सखी ! मैंने क्रीडासुन्दर उद्यान में रति से वियुक्त कामदेव के समान, रोहिणी से वियुक्त चन्द्रमा के समान कुमार सिंह को देखा । अधिक कहने से क्या, महाराज के पुत्र सिंह कुमार मानो रूपों के रूप, सौन्दर्यों के सौन्दर्य, यौवनों के यौवन तथा मनोरथों के मनोरथ हैं। मदनलेखा ने कहा-स्वामिनि ! वह कुमार गुणों के कारण सुन्दर हैं। जब मैं देवी द्वारा भेजी गयी थी तब सुबुद्धि को राजा के साथ विचार करते हुए-यदि वैसा होगा तो रति से युक्त कामदेव के समान कुसुमावली सहित राजकुमार सुन्दर स्थिति में होंगे। इसी समय उद्यान की रक्षिका पल्लविका नामक दासी आयी। उसने कुसुमावली से निवेदन किया कि महारानी ने आज्ञा दी है कि तुम दन्तवलभिका (शयनगह विशेष) में जाओ; क्योंकि महाराज ने आज्ञा दी है कि आज भवन के उद्यान को विशेष रूप से सुसज्जित किया जाय; क्योंकि यहाँ महाराज के पुत्र सिंह कुमार आयेंगे। राजकुमारी हर्षपूर्वक दन्तवलभिका में चली गयी। राजकुमार उद्यान में आया और माधवीलता के मण्डप में बैठा । उसी समय मदनलेखा ने राजकूमारी से राजकुमार का आवश्यक औपचारिकताओं के द्वारा स्वागत करने को कहा। मदनलेखा की सलाह पर राजकुमारी ने सखी के हाथ एक माला, फूल, फल और एक हंसी का चित्र भेजा जो कि अपने साथी से बिछड़ने के कारण शोकाकुल थी। उस चित्र के नीचे एक द्विपदी गाथा भी लिख दी। राजकुम को स्वीकार किया और एक राजहंस का चित्र एक पत्ते पर बनाया और उसे चित्रपट्ट पर चिपका दिया। उस पर एक प्रेमपद्य लिखकर कुसुमावली के पास भेज दिया। इस प्रकार प्रतिदिन कामदेव के बाणों के मार्ग में आये हुए लोगों के मन को आनन्द देनेवाले विद्याधरी, चकवा, भौंरा आदि प्रमुख चित्रों के सम्प्रेषण से जब उनका परस्पर अनुराग बढ़ रहा था तब कुछ दिन बीत जाने पर राजा पुरुषदत्त की बहुमूल्य प्रार्थना पर राजा लक्ष्मीकान्त ने सिंह कुमार को कुसुमावली दे दी। अनन्तर मंगल गीतों के समूहपूर्वक पाणिग्रहण प्रारम्भ हुआ। वह पाणिग्रहण पारस्परिक प्रेमयुक्त बान्धवों के हृदय को आनन्दित करने वाला था। आरम्भ से समय के विस्तार को न सहने वाले कन्या और वर के निर्मल नाखून रूपी चन्द्रमा की किरणों से युक्त हाय पहले ही परस्पर मिल चुके थे । राजकुमार के द्वारा राजकुमारी कोमल अनुरागयुक्त हृदय में पहले ही ग्रहण की जा चुकी थी। पश्चात् जिस पर पसीने की बूंदें बढ़ रही थीं, ऐसे हाथ से ग्रहण की गयी । अग्नि के चारों ओर फेरे हुए। कन्या के पिता ने दहेज दिया। ___ इस प्रकार विवाह समाप्त होने पर कालक्रम से उन दोनों का अनुराग बढ़ता गया । समस्त लोगों द्वारा प्रशंसनीय विषय-सुख का अनुभव करते हुए उनके अनेक वर्ष व्यतीत हो गये। एक बार घोड़े को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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