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पोमो भयो।
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विसज्जिओ य तेण 'जमहं कालोचियं भणिस्सामि, तं तहा कायस्वं' ति भणिऊण देवीपरियणो। सद्दाविओ मइसागरो नाम महामंती। सिट्ठो इमस्स एस वृत्तातो। चितियं च तेणं,' जुत्तं देवीए बवसियं । अहवा मा से इमिणा उवाएण तीसे वि देहपीडा भविस्सइ । ता एस ताव एत्थ उवाओबक्खियस्स राइणो कारिमा अता पोट्टवाहि दाऊण नेत्तपट्टाइणा सुसिलिट्ठा य करिय पेच्छमाणीए चेव देवीए कडिऊण दिज्जति । पच्छा य पसूयाए चेव गब्भमंतरेण चितिस्सामो त्ति चितिऊण निवेइओ नरवइस्स निययाहिप्पाओ। बहुमन्निओ राइणा । भणिया य मइसायरेण देवी-सामिणि ! तहा कडढेमि देवस्स अ'ते, जहा एसोन विवज्जह त्ति गभसहावकरत्तणेण पडिसयं तीएक सो उवाओ, संपन्नो दोहलो। पच्छा विसायमुवगयाए दरिसिओ से राया। तओ समासत्था एसा। भणिया य मंतिणा-सामिणि ! पढमपस्याए न ताव देवस्स निवेयणीओ गन्भजम्मो, अवि य ममं ति; पच्छा जहोचियं करिस्सामि ति । पडिसुयं तीए। अन्नया उचियसमए परिणयप्पाए दियो
गर्भविपत्तिः तस्याभद् इति उपायं चिन्तयामि । विसर्जितश्च तेन 'यदहं कालोचितं भणिष्यामि, तत्तथा कर्तव्यम्' इति भणित्वा देवीपरिजनः । शब्दायितो मतिसागरो नाम महामन्त्री। शिष्ट एतस्य एष वृत्तान्तः । चिन्तितं तेन, युक्तं देव्या व्यवसितम् । अथवा मा तस्या अनेनोपायेन तस्या अपि देहपीडा भूत् । तत एष तावदत्रोपायः-बुभुक्षितस्य राज्ञः कृत्रिमानन्त्रान् पेट्टबहिर्दत्वा नेत्रपटादिना सुश्लिष्टांश्च कृत्वा पश्यन्त्या एव देव्या कर्षित्वा दीयन्ते । पश्चात्प्रसूताया एव गर्भमन्तरेण चिन्तयिष्याम इति चिन्तयित्वा निवेदितो नरपतेनिजकाभिप्रायः । बहु मतो राज्ञा। भणिता च मतिसागरेण देवी-स्वामिनि ! तथा कर्षयामि देवस्यान्त्रान् यथा एष न विपद्यते इति । गर्भस्वभावरत्वेन प्रतिश्रुतं तया। कृतः स उपायः, सम्पन्नो दोहदः । पश्चाद् विषादमुपगताया दर्शितस्तस्या राजा। ततः समाश्वस्ता एषा. भणिताच मन्त्रिणा-स्वामिनि । प्रथमसतान तावद देवस्य निवेदनीयं गर्भजन्म, अपि च ममेति; पश्चाद् यथोचितं करिष्यामि इति । प्रतिश्रतं तया । अन्यदा उचितसमये परिणतप्राये दिवसे प्रसूता देवी. शब्दायितो तया मतिसागरः । भणिता
पूरा न होने पर उसके गर्भ को विपत्ति न हो अत: उपाय सोचता हूँ। जो समयोचित कहूँ, तुम लोग वैसा करना, ऐसा कहकर उसने महारानी के सेवकों को विदा कर दिया। राजा ने मतिसागर नामक महामन्त्री को बुलाया। उससे यह वृत्तान्त कहा । उसने विचार किया देवी का निश्चय ठीक है अथवा इस उपाय से रानी के ही शरीर को पीडा न हो। यह उपाय है कि भूखे राजा के पेट के बाहर कृत्रिम आंतों को नेत्रपटादि से अच्छी तरह बांधकर महारानी के देखते-देखते ही खींचकर दे दी जायें। अनन्तर गर्भ का प्रसव हो जाने पर आगे सोचेंगे, ऐसा विचारकर राजा से अपना अभिप्राय निवेदन किया । राजा ने उसे बहुमान दिया । मतिसागर ने महारानी से कहा-"स्वामिनि ! महाराज की आँतों को इस प्रकार खीचता हूँ जिससे इन्हें कष्ट नहीं होगा।” गर्भ के स्वभाव की करता से उसने यह स्वीकार किया। मतिसागर मन्त्री ने वह उपाय किया। दोहला पूरा हो गया । पश्चात् विषाद को प्राप्त हुई उसे राजा को दिखलाया गया, उससे यह आश्वस्त हुई । मन्त्री ने कहा, "स्वामिनि ! जन्म होने पर सबसे पहले राजा को निवेदन नहीं किया जाय अपितु मुझे बतलाया जाय । बाद में जो उचित होगा बह करूंगा।" रानी ने स्वीकार किया। अनन्तर उचित समय पर दिन के अस्त होने के समय महारानी ने
२. तेण-च,
२. एसो वि-क, ग,
३. कुरेतणेण ।
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