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gaiकुर-दहि-अक्खयवावडहत्याहिं
रतवणाहि ।
पत्तलेहाओ || १४२ ||
जुवईहि अविवाह विहिणा य पमक्खिया ताहि ॥ १३८ ॥ पुष्क- फलोदय भरिएहि कणयकलसेहि व्हाविया नवरं । ऊमिणिया सुपसत्यं सव्वंग पुष्णणं ॥१३॥ दिन्नाय अक्खया से गुरूह परिओसवहलपुलहि । सव्वोसहिगंधड्ढे घण के से उत्तिमंगम्मि ॥ १४० ॥ तत्तो वि यससिव वजा नवरं पसाहिज्जिउं समादत्ता । जावयरसेण पढमं मगहरचलणा कया तीसे ॥ १४१ ॥ नियतिसच्छण य कुंकुमराएग जंघियाओ से । पीणे थणकलसजुए अभिलिहिया कालेयमीसचंदणरसेण निम्मज्जियं च मुहकमलं । दइओ व्व साराओ कओ य से समयणो अहरो ।। १४३ ॥ दूर्वाङ्कुर - दध्यक्षतव्यापृतहस्ताभो रक्तवसनाभिः । युवतिभिरविधवाभिविधिना च प्रम्रक्षिता ताभिः ॥ १३८ ॥ पुष्प - फलोदयभृतैः कनककलशैः स्नापिता नवरम् । प्रोञ्छिता सुप्रशस्तं सर्वांङ्ग पुण्यवस्त्रेण ।। १३९॥ दत्ता चाक्षतास्तस्या गुरुभिः परितोषवहलपुलकैः । सर्वोषधिगन्धाढ्चे घनकेशे उत्तमाङ्गे ।। १४०॥ ततोऽपि च शशिवदना नवरं प्रसाधयितुं समारब्धा । यावकरसेन प्रथमं मनोहरचरणौ कृतौ तस्याः ॥१४१॥ निजकान्तिसच्छायेन च कुङ्कुमरागेण जङ्घिके तस्याः । स्तन कलशयुगेऽभिलिखिताः पत्रलेखाः ।। १४२। कालेयमिश्रचन्दनरसेन निर्मार्जितं च मुखकमलम् । दयित इव सानुरागः कृतश्च तस्याः समदनोऽधरः ॥ १४३ ॥
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कुश के अंकुर तथा दध्यक्षत जिनके हाथ में थे तथा जो लाल वस्त्रों को धारण किये हुए थीं, ऐसी सौभाग्यवती युवतियों द्वारा विधिपूर्वक उसका उबटन किया गया । केवल फूल और फल जिनके अन्दर भरे हुए थे ऐसे सोने के कलशों से उसका स्नान कराया गया। उसके सारे प्रशस्त शरीर को पवित्र वस्त्र से पोंछा गया । सन्तोष से भरे हुए पुलकित गुरुओं ने उसे अक्षत दिये । उसके सिर के घने केश समस्त औषधियों की गन्ध से व्याप्त थे । इसके अनन्तर भी उस चन्द्रमुखी की और सजावट की गयी । सबसे पहले महावर से उसके दोनों चरणों को मनोहर बनाया गया। उसकी जंघाओं पर तथा मांसल पुष्ट
स्तन रूपी दो कलशों पर अपनी कान्ति से चन्दन रस से उसका मुखकमल स्वच्छ किया गया। युक्त (बाल) किया गया ।। १३८-१४३ ॥
केसर मिले हुए समान अनुराग
[ समराइच्च कहा
दीप्त केशर के रंग से चित्रांकन किया गया। उसके अधर को काम प्रभावित प्रियतम के
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