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________________ वोओ भवो] काऊण य तेहि तओ वारिज्जसुहो' गणाविओ दियहो। घोसावियं पणो वि य जहिच्छियादाणमच्चत्थं ॥१३२॥ पत्तमि य तंमि दिणे तत्तो कुसुमावली पसत्थंमि । बंधुजुवईहि सहिया पमक्खणकए मुहत्तंमि ॥१३३॥ आसंदियाए मणहरधवलदुगुल्लोत्थयाए रम्माए । ठविया पुव्वाभिमुही रंगावलिचाउरंतमि ॥१३४॥ मणिपट्टयम्मि निमिया चलणा संकंतरायसोहिल्ले । तप्फंससुहासायणरसपल्लविए व विमलम्मि ॥१३॥ वच्छोउत्तेण य नहमऊहपडिवन्नसलिलसंकेण । पक्खालिउमणवज्जं निम्मवियं तीए नहयम्यं ॥१३६॥ रत्तंसुयपरिहाणा अहियं वियसंतवयणसयवत्ता । आसन्नरविसमागमपुत्वदिसिवहु व्व आरत्ता ॥१३७।। कृत्वा च ताभ्यां ततो विवाहशभो गणितो दिवसः । घोषितं पुनरपि च यथेप्सितदानमत्यर्थम् ॥१३२॥ प्राप्ते च तस्मिन् दिने ततः कुसुमावली प्रशस्ते । बन्धुयुवतिभिः सहिता प्रम्रक्षणकृते मुहूर्ते ॥१३३॥ आसन्दिकायां मनोहरधवलदुकूलावस्तृतायां रम्यायाम्।। स्थापिता पूर्वाभिमुखी रङ्गावलीचातुरन्ते ॥१३४।। मणिपट्टके स्थापितौ चरणौ संक्रान्तरागशोभावति । तत्स्पर्शसुखास्वादन रसपल्लविते इव विमले ॥१३॥ वात्सीपुत्रेण च नखमयूखप्रतिपन्नसलिलशङ्कन । प्रक्षाल्यानवद्यं निर्मितं तस्या नखकर्म ॥१३६।। रक्तांशुकपरिधाना अधिकं विकसद्वदनशतपत्रा। आसन्नरविसमागमपूर्वदिग्वधूरिवारक्ता ॥१३७।। दोनों राजाओं ने समस्त लोगों के मन को आनन्दकारक बधाई का उत्सव किया तथा विवाह का शुभ दिन निश्चित किया । पुनः इच्छानुसार अत्यधिक दान की घोषणा की । शुभ दिन आने पर वह कुसुमावली सखियों के साथ उबटन के मुहूर्त में मनोहर और सफेद रेशमी वस्त्र जिस पर बिछाया गया था, ऐसी रमणीय चौकी पर रंगोली से विभूषित चौक में पूर्व की ओर मुंह करके बैठायी गयी। उसके चारों ओर रंगोली डाली गयी। उसके दोनों चरणों को संक्रमित हुए राग की शोभा वाले मणिनिर्मित स्वच्छ पीढ़े पर रखा गया। उस समय वह पीढ़ा ऐसा लग रहा था जैसे उसके स्पर्शसुख के आस्वादनरूपी रस से पल्लवित हो गया हो। नख की किरणों के कारण जल लगे रहने की शंका से नाई ने निर्दोषरूप से पोंछकर उसके नाखून काट डाले थे। लाल वस्त्रों को पहने हुए वह अधिक विकसित मुखवाली कमलिनी के समान अथवा जिसका सूर्य से समागम हो रहा है, ऐसी पूर्व दिशा के समान लाल लग रही थी ॥१३२-१३७॥ १. वारिज्जयं विवाहः (पाइ.ना.)। वारेज्जसहो-(च)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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