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पामो भयो]
काऊण य उवओगं दिव्वेणं अहिणा विसुद्धेणं । मुणिऊण सुचरियं तो करेइ अह देवकरणिज्ज ॥१०४॥ सासयजिणपडिमाणं पूयं पूयारुहो महारंभं। पोत्थयरयणं च तहा वाएइ मुहत्तमेत्तं तु॥१०॥ अह तियससंदरीओ निज्जियमहर्षदचंदबिबालो। पीणुन्नयसुपसाहियवरथणहरबंधुरंगीओ ॥१०६॥ तिवलतरंगभंगु रमज्झविरायंतहाररम्माओ। मुहलरसणाहिणंदियवित्थिण्णनियंबबिंबाओ॥१०७॥ तत्ततवणिज्जसन्निहमणहरथोरोरुजुयलकलियाओ। नहयंदसमुज्जोवियकुम्मुन्नयचलणसोहाओ॥१०॥ गाढपरिओसपसरियविलासिगारभावरम्माओ। पेच्छइ समूसियाओ वम्महसरसल्लियमणाओ ॥१०॥
कृत्वा च उपयोगं दिव्येन अवधिना विशुद्धेन । ज्ञात्वा सुचरितं ततः करोति अथ देवकरणीयम् ॥१०४।। शाश्वतजिनप्रतिमानां पूजां पूजाहः महारम्याम् । पुस्तकरत्नं च तथा वाचयति मुहूर्तमात्रं तु ॥१०५।। अथ त्रिदशसन्दर्यः निजितमुखचन्द्रचन्द्रबिम्बाः। पीनोन्नतसुप्रसाधितवरस्तनभरबन्धुराङ्गयः ॥१०६॥ त्रिवलीतरङ्गभगुरमध्यविराजद्धाररम्याः । मुखररशना (मेखला)ऽभिनन्दित-विस्तीर्णनितम्बबिम्बाः ॥१०७॥ तप्ततपनीय सन्निभमनोहरस्थूलोरुयुगलकलिताः । नखचन्द्रसमुद्योतितकूर्मोन्नतचरणशोभाः ॥१०८॥ गाढपरितोषप्रसतविलासशृङ्गारभावरम्याः । प्रेक्षते समुच्छिता मन्मथशरशल्यितमनसः ॥१०६।।
___दैवीय विशुद्ध अवधिज्ञान के बल से अपने सच्चरित्र को जानकर वह देवों के द्वारा करने योग्य कार्यों को करता है । पूजनीय, महारमणीक शाश्वत जिन-प्रतिमाओं की पूजा करता है और मुहूर्तमात्र पुस्तकरत्न को पढ़ता है । अनन्तर जिनके मुखचन्द्र ने चन्द्रमा के बिम्ब को जीत लिया है, परिपुष्ट, उन्नत, अच्छी प्रकार से सजाय हुए उत्तम स्तनों से जिनके अंग सुन्दर लग रहे हैं, त्रिवलियों की तरंगभंगी के बीच जिनका हार सुशोभित हो रहा है, करधनी के द्वारा जिनका विस्तृत नितम्बबिम्ब अभिनन्दित है, तपाये गये सोने के समान मनोहर और स्थूल जंघायुगल से जो युक्त हैं; जिनके चरणों के नखचन्द्र से कछए के उन्नत पैरों के समान शोभा प्रकट हो रही है, गाढ़ सन्तोष से विस्तृत विलास और शृंगार के भावों से जो रमणीय लग रही है, कामदेव द्वारा फेंके गये बाणों से जिनका मन विद्ध है ऐसी देवांगनाएँ दिखाई देती हैं ॥१०४-१०६।।
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