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________________ ५४ उसाणिरुद्धं जह लुअ३-विडवालिणो दुमस्स प्पविसइ कोडर-रंधमक्क-मोहो । तह खुडिअ-भुआवलिस्स मज्झं हिअअमिदाणि खु५ गाहए विवेओ६ ॥५३॥ मह पिअ-दुहिआ उस त्ति कण्णा तुह महु-सूअण पोत्तअस्स दिण्णा । सुसरिस-वर-पत्त-संपआणं८ जणण-फलं किर इत्थिआ-जणस्स ॥५४॥ रइ-रमण-कुमारओ ऽणिरूद्धो विवहउ मज्झ सुअं मणोण्ण-सीलं । लडह-गुण-णिहीण ताण संगो रदि-रमणाण° व होदु पुण्ण-सोहो ॥५५॥ इअ कहिअ तदो णिवत्तमाणो बलि-तणओ कुमरी-घरं पविट्ठो । विहडिअ-सर-बंधणं करेइ प्पहरिस-फुल्ल-मुहंबुओ ऽणिरुद्धं ॥५६॥ यथा लूनविटपाले?मस्य प्रविशति कोटररन्ध्रमर्कमयूखः । तथा त्रुटितभुजावलेर्मम हृदयमिदानी खलु गाहते विवेकः ॥५३|| मम प्रियदुहितोषेति कन्या तव मधुसूदन पौत्राय दत्ता । सुसदृशवरपात्रसंप्रदानं जननफलं किल स्त्रीजनस्य ॥५४॥ रतिरमणकुमारकोऽनिरुद्धो विवहतु मम सुतां मनोज्ञशीलाम् । लटभगुणनिध्योस्तयोः सङ्गो रतिमदनयोरिव भवतु पूर्णशोभः ॥५५॥ इति कथयित्वा ततो निवर्तमानो बलितनयः कुमारीगृहं प्रविष्टः । विघटितशरबन्धनमकरोत् प्रहर्षफुल्लमुखाम्बुजोऽनिरुद्धम् ॥५६॥ (८३) Also दुअ. (८६) Also विवेए. (८९) Also जणणभलं. (८४) Also क्कडगंधरंकमाहो. (८५) Also वुगाहए. (८७) Also उसेत्ति. (८८) Also संपदाणं. (९०) Also रदिमदणाण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001879
Book TitleUsaniruddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1996
Total Pages178
LanguagePrakrit, Sanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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