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________________ २४ उसाणिरुद्धं स हि दिप्पइ विप्प-कंटओ'६ भुज-साहस्स-बलेण दुज्जओ । अह किं भणिमो महेसरो भअवं जस्स दुवार-पालओ ॥१२॥ अहिअं जहि णं महासुरं परिमोएहि तदो उसावई । महसूअण कि पिहज्जणो विअ णेक्कारमिणं उवेक्खसि८ ॥१३॥ इअ संसुणिदम्मि सोरिणो हिअ गाहइ कोह-पावओ । भिउडिच्छल-धूम-णिग्गमो सहसा वच्चइ१९ जस्स इंधदं ॥१४॥ अह सो कअवम्म-सच्चई-पमुहेहिं सबलेहि संवुदो । बलभद्द-पुरस्सरो हरी णअरादो तरसा पचिट्ठइ ॥१५॥ स हि दृप्यति विप्रकण्टको भुजसाहस्रबलेन दुर्जयः । अथ किं भणामो महेश्वरो भगवान् यस्य द्वारपालकः ॥१२॥ अहितं जह्येनं महाऽसुरं परिमोचय तत उषापतिम् । मधुसूदन किं पृथग्जन इव न्यक्कारमिममुपेक्षसे ॥१३॥ इति संश्रुते शौरेहृदयमगाहत क्रोधपावकः । भ्रुकुटिच्छलधूमनिर्गमः सहसाऽव्रजद्यस्य चिह्नताम् ॥१४॥ अथ स कृतवर्मसात्यकिप्रमुखैः स्वबलैः संवृतः । . बलभद्रपुरःसरो हरिनगरात्तरसा प्रातिष्ठत ॥१५॥ (१७) परिमोएइ. (१८) उवक्खसि. (१६) विप्पकडुओ. (१९) वठ्ठइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001879
Book TitleUsaniruddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1996
Total Pages178
LanguagePrakrit, Sanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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