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योगीन्दुदेवविरचितः [अ० २, दोहा १९अप्पु तमित्थंभूतमात्मानं मुणि मन्यस्व जानीहि वम् । पुनरपि किंविशिष्टं जानीहि । णिचु शुद्धद्रव्याथिकनयेन टोत्कीर्णज्ञायकैकस्वभावसान्नित्यम् । पुनरपि किंविशिष्टम् । णिरंजणु मिथ्यावरागादिरूपाञ्जनरहितसानिरञ्जनम् । पुनश्च कथंभूतमात्मानं जानीहि । भाउ भावं विशिष्टपदार्थम् इति । अत्रैवंगुणविशिष्टः शुद्धात्मैवोपादेय अन्यद्धेयमिति तात्पर्यार्थः ॥ १८ ॥ अथ
पुग्गल छव्विहु मुत्तु वढ इयर अमुत्तु वियाणि । धम्माधम्मु वि गयठियह कारणु पभणहिणाणि ।। १९॥ पुद्गलः षड्विधः मूर्तः वत्स इतराणि अमूर्तानि विजानीहि ।
धर्माधर्ममपि गतिस्थित्योः कारणं प्रभणन्ति ज्ञानिनः ॥ १९ ॥ पुग्गल इत्यादि । पुग्गल पुद्गलद्रव्यं छब्बिहु षड्विधम् । तथा चोक्तम्- " पुढवी जलं च छाया चउरिदियविसय कम्मपाउग्गा । कम्मातीदा एवं छन्भेया पुग्गला होति ॥"। एवं तत्कथं भवति । मुत्तु स्पर्शरसगन्धवर्णवती मूर्तिरिति वचनान्मूर्तम् । वढ वत्स पुत्र । इयर इतराणि पुद्गलात् शेषद्रव्याणि अमुत्तु स्पर्शाद्यभावादमूर्तानि वियाणि विजानीहि बम् । धम्माधम्मु वि धर्माधर्मद्वयमपि गइठियहं गतिस्थित्योः कारणु कारणं निमित्तं पभणहिं परिणत हुआ है, ऐसा हे योगी, शुद्ध निश्चयसे अपने आत्माको ऐसा समझ, शुद्ध द्रव्यार्थिकनयसे बिना टाँकीका घडा हुआ सुघटघाट ज्ञायक स्वभाव नित्य है । तथा मिथ्यात्व रागादिरूप अंजनसे रहित निरंजन है । ऐसे आत्माको तू भली-भाँति जान, जो सब पदार्थोंमें उत्कृष्ट है । इन गुणोंसे मंडित शुद्ध आत्मा ही उपादेय है, और सब तजने योग्य हैं ॥१८॥
आगे फिर भी कहते हैं-[वत्स] हे वत्स, तू [पुद्गल:] पुद्गलद्रव्य [षड्विधः] छह प्रकार तथा [मूर्तः] मूर्तिक है, [इतराणि] अन्य सब द्रव्य [अमूर्तानि] अमूर्त हैं, ऐसा [विजानीहि] जान, [धर्माधर्ममपि] धर्म और अधर्म इन दोनों द्रव्योंको [गतिस्थित्योः कारणं] गति स्थितिका सहायक-कारण [ज्ञानिनः] केवली श्रुतकेवली [प्रभणंति] कहते हैं । भावार्थ-पुद्गल द्रव्यके छह भेद दूसरी जगह भी 'पुढवी जलं" इत्यादि गाथासे कहे हैं । उसका अर्थ यह है, कि बादरबादर १, बादर २, बादरसूक्ष्म ३, सूक्ष्मबादर ४, सूक्ष्म ५, सूक्ष्मसूक्ष्म ६, ये छह भेद पुद्गलके हैं । उनमेंसे पत्थर काठ तृण आदि पृथ्वी बादरबादर हैं, टुकडे होकर नहीं जुडते, जल घी तैल आदि बादर हैं, जो टूटकर मिल जाते हैं, छाया आतप चाँदनी ये बादरसूक्ष्म हैं, जो कि देखनेमें तो बादर
और ग्रहण करनेमें सूक्ष्म हैं, नेत्रको छोडकर चार इंद्रियोंके विषय रस गंधादि सूक्ष्मबादर हैं, जो कि देखनेमें नहीं आते, और ग्रहण करनेमें आते हैं । कर्मवर्गणा सूक्ष्म हैं, जो अनंत मिली हुई हैं, परंतु दृष्टिमें नहीं आती, और सूक्ष्मसूक्ष्म परमाणु है, जिसका दूसरा भाग नहीं होता । इस तरह छह भेद हैं । इन छहों तरहके पुद्गलोंको तू अपने स्वरूपसे जुदा समझ । यह पुद्गलद्रव्य स्पर्श रस गंध वर्णको धारण करता है, इसलिये मूर्तिक है, अन्य धर्म अधर्म दोनों गति तथा स्थितिके कारण
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