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कारण
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कविपल्हविरचिता पट्टावली(जिनदत्तसूरिस्तुतिः)। जिण विट्ठई आणंदु चडइ अइरहसु चउग्गुणु । जिण दिइ झडहडइ पाउ तणु निम्मलु हुइ पुणु । जिण दिट्ठइ सुहु होइ कट्ठ पुव्वुक्किउ नासइ । जिण दिट्ठइ हुइ ििद्ध दूरि दारिदु पणासइ । जिण दिट्ठइ हुइ सुइ धम्ममइ अबुहहु काई उइखहु । पहु नवफणिमंडिउ पासजिणु अजयमेरि कि न पिक्खहु ॥ १ ॥ मयण म करि धरि धणुहु बाण पुणि पंच म पयडहि । रूविण पिम्मपयावि बंभ हरि हरु मन(त) विनडहि । रूउ पिम्मु ता बाण मयण ता दरिसहि धणुहरु । नम(व)फणिमंडिउसीसि जाव न हु पेक्खहि जिणवरु । जइ पडिहसि पासजिणिंदवसि नाणवंत निम्मलरयण । न सु धणुहरु बाण न रूव नहि न रूयपिमु हुइ हइमयण ॥ २ ॥ नम(व)फणिपासजिणिंदु गढिउ अन्नल्लि जु दिट्ठउ । अजयमेरि संभरिनरिंदु ता नियमणि तुट्ठउ । कंचणमउ अइ कलसु सिहरि साणउ रज्जविअउ । जणु सुतरणि तउ तवइ तिव्वु(त्थु) आयासि सउन्नउ । जा वुक्कमिसिण ढक्कारविण करु उब्भिवि फरहरइ धय । जिणदत्तसूरि धर धम(व)लि जसि ता पसिद्धि सुरभुयणि कय ।। ३॥ देवसूरिपहु नेमिचंदु बहुगुणिहिं पसिद्धउ । उज्जोयणु तह वद्धमाणु खरत(?)रवर लद्धउ । सुगुरु जिणेसरसूरि नियमि जिणचंदु सुसंजमि । अभयदेउ सव्वंगु नाणि जिणवल्लहु आगमि । जिणदत्तसूरि ठिउ पट्टि तहि जिण उज्जोइउ जिणवयणु । सावइहिं परिक्खिवि परिवरिउ मुल्लि महग्घउ जिव रयणु ॥४॥
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