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लोभजयो
पदेशः ।
कुमारपाल दिनचर्यावर्णनम् ।
थेव - कए कवड- परो निविडं निवडतमावया - लक्खं । लक्खइ न जणो लगुडं पयं पितो बिडालो व्व ॥ माया सेण कवड - पओग - कुसला अकिञ्चमायरिडं । पत्ता इव सयमेव लज्जिडं नाइणी निहणं ॥ ( अत्र नागिनीकथाsनुसन्धेया )
जो कोह- माण- माया - परिहार- परो वि वज्जइ न लोहं । पोओ व्व सागरे सो भवम्मि बुड्डुइ कु-कम्म-गुरू ॥ ससि-कर-धवला विगुणा निय- आसय- वाह - कारए लोहे | आवहृति जल-कणा लोहम्मि व जलण-संसत्ते ॥ इह लोयम्मि किलेसे लहिउं लोभाउ सागरो गरुए । पर-लोए संपतो दुग्गइ दुखाई तिक्खाई ॥
( अत्र सागरदृष्टान्तो ऽनुसन्धेयः ) इय हेमसूरि-मुनि पुंगवस्त्र सुणिऊण देसणं राया । जाणिय-समत्त तत्तो जिण-धम्म-परायणो जाओ || कुमारपालदिन- तो पंच-नमुक्कारं सुमरंतो जग्गए रयणि-सेसे | चर्यावर्णनम् । चितइ अय दो वि हिय (?) *देव-गुरु-धम्म-पडिवति ॥ काऊ काय सुद्धिं कुसुमामिस-थोत्त-विविह-पूयाए । पुज्जर जिण-पडिमाओ पंचहि दंडेहिं वंदेइ || निचं पञ्चक्खाणं कुणइ जहासत्ति सत्त-गुण-निलओ । सयल -जय-लच्छि-तिलओ तिलयावसरम्मि उवविसइ || करि-कंधराधिरूढो समत्त सामंत- मंति-परियरिओ । वच्चइ जिणिंद-भवणं विहि-पुव्वं तत्थ पविसेइ ॥ अट्ट-प्यार-प्याइ पूइडं वीयराय-पडिमाओ । पण महि-निहिय- सिरो थुणइ पवित्तेहिं थोत्तेहिं ॥ गुरु- हेमचंद -चलणे चंदण- कप्पूर-कणय- कमलेहिं । संपूऊण पणमइ पञ्चक्खाणं पयासेइ ॥ गुरु-पुरओ उवविसि पर-लोय - सुहावहं सुणइ धम्मं । तूण हिं वियरइ जणस्स विन्नित्तियावसरं ॥ विहिया कर थालो पुणो वि घर-चेइयाई अचेइ । कय - उचिय - संविभागो भुंजेइ पवित्तमाहारं ॥
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* अस्पष्टार्थोऽयं पाठ: । जिनमण्डनगणिविरचित - कुमारपालप्रबन्धे तु 'चिंतह य दोवि हियए ( पृ० १०७ प्र० ) इत्येवमुपलभ्यते ।
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